सहजता-चतुरता तृषित
जिनकी भीतरी गति लोक संग्रह में है वह चतुर होने में है पर यह प्रपंच का संग्रह केवल मूर्खता है ।
चतुरता भी वह ही सच्ची है जो प्रेमास्पद को रिझा सकें ।
जैसे नागरता की रासि किशोरीजू । प्रेमास्पद के विलास और सुख को सिद्ध चाहने हेतु जो प्रवीण है वह ही चतुर है । अति माधुर्य और अति सरसता से छुटकर प्रपंचमयी रहना केवल धान कुटकर तुस (भुसा) या जैसा आहार है । चने को फेंक केवल छिलका चबाना कोई चतुराई नही है । परन्तु विषयी को यह बडी चतुरता अनुभव होती है और उनके पास बहुत दिव्य तर्क भी रहते है । चतुरता भी एक गुण है जो नागरी-नागरता में सिद्ध होता ।
(नागरी - प्रेमकलाओं की निपुण कौशलता-चतुरता)
किशोरी जू ही अति भोरी है । वह ही अति सहज है ।
सो जो उनकी ओर चलने लगे वह अति भोरता-विभोरता से भरता जाता है और वह ही सहजता में भीग पाता है क्योंकि प्रपंच तो सहजता छुटने भर से ही सिद्ध हो पाता है । और रस पथ सहज अति सहज है । सो जो सरस-सहज किशोरी की ओर है वह ही सहज भोराई में भीगी स्थितियाँ है ।
भावपथ के सभी खेल से प्रेमास्पद को सुख होना चाहिये ।
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