तुम ढह जाती हो , युगल तृषित
तुम ढह जाओगी , मुझे ना छुना ... ख़्वाब हूँ ए निगाह मेरी गीले रँग ना बुनना ... यहीं छूकर सरकती हवा ही तो हूँ महकती मेरी आरजुओं की मौज ही पीना जहाँ चलना ... टपकना ... लहराकर बाँहों में भरना साँस होकर मेरी रूह का नशां बन , कहीं ठहरना ... मैं कतरा ए ईश्क़ हूँ , ए इबादत मेरी ... दुआओं में रहना , निगाहों में बहना , दिल में सरकती ... मचलना देखो ! बरस कर ... बह जाती है , मेरी चाहत से ... यें बातें इन कतरनों को तुम बुन लेना ... गुनगुनाहटों पर नाचती रहना ना सरकना , पँख रख ... उड़ना ! ए ठण्डी आहट ... पसीनों में ना झरना ... दिल का बादल भरना ...उससे बातें करना ... गर्म इरादों पर बौछार बनी रहना ... - युगल तृषित