विशुद्ध वैराग्य से विशुद्ध अनुराग , तृषित
दोहरा दायित्व है पथिक का ...
विशुद्ध वैराग्य ... विशुद्ध अनुराग ।
विशुद्ध वैराग्य हो नहीँ पाता तो अनुराग कोपल प्रकट नहीँ होती ।
श्री धाम कृपा करता है ...
धाम का परमाणु स्वतः भाव और रस प्रदान करता है तो वहाँ अनुराग का प्रयास नहीँ रहता । बस फिर विशुद्ध वैराग्य उदय हो । हाँ ... मिल रहे वृन्दावनिय रस भाव परमाणु को गृहण कर अनुराग कोपल खिलने लगे तो अनुराग में ऐसी शक्ति है कि वह सहज वैराग्य करा कर उसका स्मरण भी शुन्य कर देता है । और अनुराग स्थिति से ... तृप्ति की अनुभूति अतृप्ति होती है तो अनुराग प्राप्त हो शून्यता रहती है ।
वास्तविक प्राप्तियां अति सहज है ... बोध शून्यता से भरी हुई । ... कभी सहज ग्राम ब्रज वासी से मिलकर देखिये ... उसे पता नही होता और आंतरिक सम्बन्ध रहता है श्री श्यामसुंदर से ... श्री प्रियाजु से ।
तृषित
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