श्यामल अनुसरण , युगल तृषित
श्यामल अनुसरण शून्य होने पर प्राप्त सघन सरस अनन्त उत्सव श्रीकृष्णालिंगन ... ! सबहिं रँग छाडहिं कृष्ण सँग रँगहिं । कुछ भी कामना या इच्छाएँ मेरे भीतर शेष है , तो श्रीकृष्ण और उनका यह लीला-विलास पथ कितने ही प्रयासों से अस्पर्श ही है । यह स्पर्श चाहता है कि कोई अन्य विकल्प ना स्पर्श होवें । स्वयं को पुनः - पुनः भरने के लिये अनन्त साधन है परन्तु सघन शून्य सरस शीतल होने का अवसर केवल निर्मल प्रेमालिंगन देता है । इसी प्रेमालिंगन को योग बोध या समाधि भी कहा जा सकता है परन्तु स्वयं की पूर्णाहुति जितनी समृद्ध होती है उतना ही दिव्यतम विकसित होता है यह रस का सरस स्पर्श । श्रीकृष्ण प्रीति चकोर को एक बार समस्त प्रकट - अप्रकट प्रकाश के प्रभाव से बनते रँग कल्प को निःसार मानकर हृदय के नयन मूँदने की गहन आवश्यकता रहती है और उस दशा में पुकार उठे ...हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । पुकार जब लालसामयी होकर जितनी सहज सरस निर्मल और मधुर होती जावेगी ...उस पुकार को श्रवण होगी , श्रीकृष्ण पुकार । निज हृदय में श्री वेणु के यह लीला-उत्सव सरसतम मुद्रांकनों में झूमा देगें । परन्तु अन्य क...