श्यामल अनुसरण , युगल तृषित
श्यामल अनुसरण
शून्य होने पर प्राप्त सघन सरस अनन्त उत्सव श्रीकृष्णालिंगन ... !
सबहिं रँग छाडहिं कृष्ण सँग रँगहिं । कुछ भी कामना या इच्छाएँ मेरे भीतर शेष है , तो श्रीकृष्ण और उनका यह लीला-विलास पथ कितने ही प्रयासों से अस्पर्श ही है । यह स्पर्श चाहता है कि कोई अन्य विकल्प ना स्पर्श होवें । स्वयं को पुनः - पुनः भरने के लिये अनन्त साधन है परन्तु सघन शून्य सरस शीतल होने का अवसर केवल निर्मल प्रेमालिंगन देता है । इसी प्रेमालिंगन को योग बोध या समाधि भी कहा जा सकता है परन्तु स्वयं की पूर्णाहुति जितनी समृद्ध होती है उतना ही दिव्यतम विकसित होता है यह रस का सरस स्पर्श । श्रीकृष्ण प्रीति चकोर को एक बार समस्त प्रकट - अप्रकट प्रकाश के प्रभाव से बनते रँग कल्प को निःसार मानकर हृदय के नयन मूँदने की गहन आवश्यकता रहती है और उस दशा में पुकार उठे ...हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । पुकार जब लालसामयी होकर जितनी सहज सरस निर्मल और मधुर होती जावेगी ...उस पुकार को श्रवण होगी , श्रीकृष्ण पुकार । निज हृदय में श्री वेणु के यह लीला-उत्सव सरसतम मुद्रांकनों में झूमा देगें । परन्तु अन्य किसी भी सम्भावना या वार्ता में रूचि श्रीकृष्ण के स्पर्श तिमिर सुख से दूर ही करेंगी । जहाँ जहाँ यह सरसता प्रकट उत्सवित है वह सभी दशाएँ चलती फिरती रजनियाँ ही है । प्रायः प्रपञ्च में संकल्प शून्य होना असम्भव है परन्तु जो कल्प-संकल्प शून्य होकर मात्र प्रेम रँग के सँग भीगी दशाएँ है वह उन्हीं के नादित वादित संगीत सँग सरस नृत्यांकनों में सहज सरित है ...कालिन्दी जू की अलिन स्वयं सरिताई भरित हिय लिये बिहर रही होती है , प्रेम बिन्दु स्पर्श लालसा नदी ही बनाकर बहा देता है लीला-सरोवरों में । स्पर्श कीजिये निज हिय क्या वह एक नदी है ...??? ... सरसता जो दे सकती है वह किसी नीरस संयोग में है ही नहीं । रसिक रीतियाँ श्रीयुगल सरकार को रसप्रेम विपिन में बिहरते बिहारिणी बिहारी मानकर तृप्त सुधा बरसा रही है तो वह श्रीकृष्ण की सरस सहज कृष्णिमाओं का अर्चन सेवन ही करना चाह रही है । श्रीकृष्ण और श्यामल सुधा है सो ...और श्यामल हो स्पर्श हो यह हिय पँक पर श्रीपदपँकज । युगल तृषित ... ... हाँ री , यह लीला की ललिताईं प्यारे प्राण को और सघन गह्वर और निर्मल सुगोप्य रस कन्दराओं में छिपाकर खोज रही है वह निभृत कृष्ण सुख ... हे मृगमद की मरीचिका अनुभव करो इन्हीं के निर्मल कस्तूरी स्वेदबिन्दु (श्रमकण) से इन्हीं का श्यामल यमनाचर्न । जयजय श्रीसरसश्यामल कुँजन वासित श्रीश्यामाश्याम ।
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