श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित
श्रित कमला कूचमण्डल ऐ ।
श्री किशोरी जी - कमले - आपकी आश्रय स्वरूपिणी श्री जी का कूच मण्डल आपका आश्रय है ।
श्यामसुन्दर के क्रीडाविलास की सिद्धि , उनकी प्रियसी वशता को कहता जयदेव जी के गीत का यह प्रथम भाव ... !
ईश्वरत्व की निश्चिन्तता को कहने के लिये भी उनकी रस लोलुप्ता को प्रकाशित किया जाता है । जो निश्चिन्त होगा वही रस-आतुर होगा । जिसे विभिन्न चिंतन सताये वह श्री प्रिया के स्तन मण्डल का आश्रय कैसे लेगा ?
यहाँ वन्दना श्यामसुन्दर की हो रही है और उन्हें प्रथम ही कमला के स्तन मण्डल का आश्रय लेने वाला कह कर उनकी रसमयता से रस आतुर भगवत् - पथिकों की और पिपासा की वृद्धि की गई है ।
सामान्य जन विचार कर सकते है कि ईश्वर कैसे रस लोलुप्त होंगे ? यह कूच मण्डल का आश्रय क्या जगत में ईश्वर की विषय सिद्धि करता है ?
विषयी और कामुक - वासनाओं घिरे हम इस बात को नहीँ समझ सकते है कि रस और काम में भेद क्या है ?
रसिक सन्त इस तरह की जयघोष सर्वप्रथम अपनी रचना में कर के विषयी जन को लौटा देते है और प्रेमी-बावरे जन को ही अग्रिम कदम बढ़ाने का संकेत करते है ।
काम वासना में डूबा तो यह प्रथम उक्ति से ही लौट जाता है , वह सोचता है जो स्वयं स्तन मण्डल का आश्रय लेता हो वह भगवान कैसे होगा ?
कुच मण्डल पर आश्रित ! आखिर कैसे ?
ब्रह्म-परमात्मा-भगवान के समस्त अध्ययन-मनन आदि को यही प्रथम पंक्ति चकित कर देती है ।
गीत-गोविन्द की रस सिद्धि को प्रकाशित करते हुये इस गीत का प्रथम पद ही ईश्वर के युगलतत्व का प्रकाशक है । रस और आनन्द के सारभूत सरोवर राशि श्यामसुन्दर की प्रथम विशेषता तो उनकी रसमयता और माधुर्यता ही है ।
श्री किशोरी जी उनकी आह्लादिनी शक्ति है । श्यामसुन्दर में जो आह्लाद है , उनके नाम-स्मरण-कीर्तन- दर्शन आदि से जो मन रंजित हो जाता है वह रञ्जनता , वह आह्लाद क्या जीव का है ? नहीँ वह तो उसी रस भुत श्यामसुन्दर का ही है और उनमें भी वह आह्लाद वह रस समुद्र आया कहाँ से ?
कमला से - श्री किशोरी से ...श्री किशोरी जी स्वयं रस-माधुर्य की सिंधु राशि की सारभूता होकर भी उसी रसमाधुर्यसार सिंधु से कमलिनी रूप प्रकाशित है अर्थात् सार रस और सार माधुर्य -सौंदर्य होकर भी वह श्यामसुन्दर को जलराशि की सौंदर्य निधि की भाँति कमल की तरह ही अति विशेष रस-माधुर्य-सौंदर्यता से अभिसार करने हेतु कमला है । कमलवासिनी , कमलरूपिणी का अर्थ है रस-माधुर्य -सौंदर्य की सार राशि का प्रकाशित कमल स्वरूप ।
कमल जलराशि से ही सौंदर्य माधुर्य से प्रकाशित है , वैसे ही पूर्ण रससार सिंधु , माधुर्य-सौंदर्य सार सिंधु होकर भी उसी का अत्यंतम सार स्वरूप दिव्य कमल है ।
और उसी आह्लादिनी की शक्ति के आश्रय से सत्-चित्-आनन्द भगवान आनन्द रूप है । उनमें आनन्दत्व का जो प्रकाश है वह आया है उनकी रसपिपासा से । शास्त्र स्वयं उन्हें रस भुत सार कह कर मौन हो जाता है , रसो वै सः । परन्तु अत्यंत रस पिपासु ही रसभुत हो सकता है । श्यामसुन्दर का निज रस भी आह्लादिनी के प्रकाश से है । श्यामसुन्दर का रस स्वरूप प्रकाशित हुआ क्योंकि अगर यह रस उन्हें कहीं से प्राप्त न होकर उनके ही भीतर प्रकट होता , वह उनके अन्तः में वासित श्री आह्लादिनी का रस न होता तो वह रस इसतरह प्रकाशमय नही होता । जैसे वर्षा के जल से व्यक्ति स्पष्ट भिगा हुआ दिखाई दे देता है वैसे ही रस में भीगे भगवान का यह रस , यह आह्लाद , यह लावण्य , यह माधुर्य जिस शक्ति से प्रकट हुआ है वह उनकी आंतरिक आह्लादिनी शक्ति है । आंतरिक आह्लादिनी शक्ति ही अनन्त रस आह्लाद से स्वरूपित हो प्रकट रूप में श्री किशोरी जी है जो कि भगवान की ही अन्तः रस वस्तु है ।
जिस तरह जीव में चेतना का वास और उसकी ही आह्लाद आदि शक्तियों से जीव का जीवन विकसित होता है वैसे ही आह्लादिनी की आंतरिक और बाह्य श्रीकिशोरी जु की तरँग आदि से ईश्वरत्व का भी विकास होता है । जिस तरह जीव नित्य नव जीवन का पिपासु है वैसे ही रस रूप श्यामसुन्दर नित नव रस पिपासु है अतः यहाँ कुच मण्डल का आश्रयभुत उन्हें कहा गया है । यह स्तन मण्डल ही रस-माधुर्य के सार रूप यहाँ कहे गए है । भाव रूप हृदय के स्पर्श हेतु बाहरी देह में स्तन का स्पर्श होगा , हृदय के आह्लाद से ही कुच मण्डल विकसित होते है वास्तविक स्पर्श और आश्रय तो यहाँ हृदय मण्डल का है । परन्तु रसिक की बात रसिक ही समझें अतः दैहिक विषय को प्रकाशित किया गया है । श्यामसुन्दर का सम्पूर्ण वास तो श्री किशोरी जु का अन्तः हृदय ही है अतः वह किशोरी हृदय वस्तु होने से किशोरी इच्छा से प्रकाशित होने से उनके हृदयमण्डल के आश्रयत्व है । जैसे जीव आत्मा की सत्ता से दृश्य है अतः उसे स्थूल आदि दृश्य होने के लिये उसकी आश्रय शक्ति की आवश्यकता है ही । आत्मा जब देह त्याग कर देती है तब देह स्वभाविक प्रकाश नही हो सकती । अतः ब्रह्म को परमात्मा और परमात्मा को और भी सार भुत साकार स्वरूप देने में जो सामर्थ्य और शक्ति लगी है वह आह्लाद वृत्ति है अर्थात् श्री किशोरी जी के रस से ही श्यामसुन्दर ब्रह्म से भगवान हुए है और जिस शक्ति के आह्लाद से वह निराकार से साकार प्रकाशित हो गए उसी शक्ति के प्यासे भी हो गये है । जैसे जल निराकार तत्व है उसमें सौंदर्य-माधुर्य सब है , जब जल का सौंदर्य आह्लादित होकर कमल रूप में प्रकट हो तब वह जल के सार तत्व का साकार रूप ही है और साकार होने पर अब उसे उस जल के आह्लाद शक्ति की पिपासा और गहरा गई है वह और आह्लादित होकर और प्रकाशित - और खिलना चाहता है ।
और हाँ बाहर की वस्तु से कमल का प्रस्फुरण सम्भव नहीँ , वैसे ही अनन्त शक्ति भगवत् तत्व से बाह्य है परन्तु जो शक्ति उनकी आंतरिकता में है वह ही उनके नित्य प्रस्फुरण का कारण है । श्री कृष्ण तत्व असहज इसलिये भी है क्योंकि वह नित्य पूर्ण होकर भी नित्य नव लीला से नित्य प्रस्फुरित होते रहते है । "सत्यजीत तृषित" । जयजयश्यामाश्याम ।
अद्भुत।
ReplyDeleteसो जानइ जेहि देव जनाई।
जानत तुम्हहिं तुम्हहिं होइ जाई।।