दो घड़ी आहिस्ता रेशम सी नज़रो से ...

दो घड़ी आहिस्ता रेशम सी नज़रों से हौले-हौले तेरा दीदार भी कभी करूँ

चुभ ना जाये निगाह तुझे , इन निगाहों में अब सुर्ख गुलाब की दवा रोज करूँ ...

इक अदद सलीका नहीँ इन निगाहोँ को गुलशन की तस्वीरों का
हमने तो इन्हें चुभते कंकरों में ही सदा बिखरा सा पाया था

अब तलब उठती है जो शहंशाहे आफ्ज के खूबसूरत ख़ुदा के दीदार की
पर अपनी बेरुख बेरहम बदमिजाज़ निगाह में मुहब्बत का समन्दर कहाँ से लाऊँ
-- तृषित

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इस भाव की समीक्षा एक प्रेमी संग

दो घड़ी आहिस्ता रेशम सी नज़रों से हौले-हौले तेरा दीदार भी कभी करूँ

♡दो घड़ी आहिस्ता से दीदार कभी हुआ था
तभी तो आज नज़रें हुईं शबनम सी

चुभ ना जाये निगाह तुझे , इन निगाहों में अब सुर्ख गुलाब की दवा रोज करूँ ...

♡मैली इन नज़रों से मिल धुंधला ना जाए तेरी निगाह
गुलाब जल से महका लेते हैं आफ्ताब भी

इक अदद सलीका नहीँ इन निगाहोँ को गुलशन की तस्वीरों का
हमने तो इन्हें चुभते कंकरों में ही सदा बिखरा सा पाया था

♡सलीका-ए-अदद जो होता तो गुल्शन-ए-बहार होते
चुभते कंकरों में भी अदद नाजुक फूलों सा था

अब तलब उठती है जो शहंशाहे आफ्ज के खूबसूरत ख़ुदा के दीदार की
पर अपनी बेरुख बेरहम बदमिजाज़ निगाह में मुहब्बत का समन्दर कहाँ से लाऊँ

♡तलब तो सदा से तेरी नज़र की थी इन निगाहों को
फक़त तेरी इक महोब्बत-ए निगाह से
खारा पूरा समन्दर ही झलमला उठा

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