बहुतों ने कहा तुम रस हो , तृषित
बहुतों ने कहा तुम रस हो
रसिया हो , रसिक हो , रसराज हो ।
फिर और करीब गया
तुम्हारा अपना कोई
तो देखा
तुम प्यासे हो
तुम बावरे हो
तुम साँवरे हो
तुम घायल हो
तुम पूरे हो
पर हेतु !
पर ख़ुद में अधूरे हो ।
रस पीते पीते न थकते भृमर हो
तुम ही तृषित हो
सच्चे तृषित हो
रसिकराज तुम तृषित हो
और मैं तुम्हारी तृषा की चरणदासी । - तृषित
(नेम वाज गिफ्टेड हिम)
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