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Showing posts from April, 2019

अप्राप्त द्वन्द ... तृषित

निष्काम राजा को विरक्त होने में इतनी दुविधा नही होती जितनी कामनाओं से भरे किसी निर्धन को होती हो ।  किसी स्थिति में कोई दोष नही है ।  दोष है माँग में (कामना) ।  हमारे देश में ए...

सदुपयोग और द्वन्द

किसी वस्तु से नही उसके दुरुपयोग से हानि है । और उसके सदुपयोग से निश्चित दिव्य हित सम्भव है ।  वस्तुओं की माँग ना होकर सदुपयोगिता की माँग उठे । दिवारात्रि वास्तविकता से अनभ...

वैचारिक द्वन्द और भावात्मक एकता , तृषित

इस कुँज भाव में सँग सँग होने पर भी हम सभी वास्तविकता में (कुँज सँग युगल लीला रूपी वास्त्विकता में ) सँग क्यों नही है ??? श्रीकिशोरी जू में अनन्त भाव सुधा है । अर्थात् अनन्त भावों...