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Showing posts from August, 2020

सहज , तृषित

सहज  रस कुँज हो या नवधा आश्रय यह *सहज* सर्व उत्कृष्ट स्थिति है  ।  मै सहज हो सकता हूँ क्या ??  नहीँ *मैं* कभी सहज नहीं हो सकता ।  सहजता की वास्तविकता यह है कि सहजता स्वयं में दर्शनीय हो नहीं सकती । स्वयं में सहजता तलाशना ही असहजता है ।  सहजता है ... आप सहज हो , वह सहज है , यह सहज है , सब सहज है । मैं असहज हूँ । यहीं  सहजता का दर्शन होना है ।  सहज को सहजता ही दर्शन देती है । इसलिये जब तक तुम मुझे सहज न लगने लगो , मुझमें सहजता है यह भृम होगा ।  और वक्ता , लेखक कभी सहज नहीं हो सकता जब तक कि उनका अन्तस् स्वयं के चिंतन की एक बिन्दु भी छुवे हो ।  पाठक - श्रोता अवश्य सहज पथ पर है ... सेवक - अनुचर - परमार्थी अवश्य सहजता की ओर है , अतः मैं कभी सहज हुआ तो तुम सहज दिखोगे और तुम दिखने लगे सहज तो स्वप्न में भी मेरे प्राण तुम्हारे अन्तः रस भावार्थ तृषित रहेंगे ।  सहजता दर्पण है जो अपना स्वरूप नहीं जानता , सन्मुख को ही स्व में पा सकें । सहज नेत्र , सहजता ही देखते है । सहज कर्ण सहजता ही सुनते है । सहज वाणी सदा सहज ही रहती है । सहजता मुझमें हो नहीं ...

श्रीजी कौ उत्सव 2020 , तृषित

उत्सव आई रह्यौ ह्वे उत्सवित ही रहियौ । जहाँ खड़ी ह्वे , वहीं झूमती रहियौ ।  वृन्दावनिय रस रीति का सहज उत्सव तो राधा अष्टमी है । निकुँज  रीति के उपासक श्रीजी के रस रूप प्रेम प्राकट्य सुख उत्सव में सहज ही भीगकर झूमते हुए उत्सवित हो उठते रहे है । इतने धूमधाम से बहुत ही बहुत कुँज निकुँज में झूम झूम कर यह उत्सव ऐसा मनाया जाता रहा है कि सम्भवतः कोई निराली सहज स्थितियाँ ही कुछ कुँज की उत्सव लहरों में भीग कर और-और रस रंगों में भीगने को दौड़ पड़ती हो अन्य कुँजन में । जैसे श्रीविपिन ही प्रफुल्ल होकर उत्सवित हो गए हो और उनके सहज सरस प्रेम संक्रमण में आये जीव - पदार्थ सब ही उत्सवित होकर यहाँ वहाँ रस रंगों को भर भर कर और माधुरी बलिहार में बौराये फिर रहे हो । श्रीजी के इन सरस उत्सवों से न कोई कभी थका होगा , न ही पूर्ण उत्सवित उन्माद निहारा ही भर होगा । कितना अमृत बरसता है यह तो बिन्दु बिन्दु सहज प्रसाद में पीकर ही कोई अनुभव कर सकता है । भला कौन है जिसने जल की वर्षा के बिंदुओं का भी संचय पूरा पूरा कर ही लिया हो , तब तो मधु धाराओं के रसामृत वर्षण कैसे समेटते बन सके । आज सम्पूर्ण श्रीविपिन उत्सवि...