श्रीजी कौ उत्सव 2020 , तृषित

उत्सव आई रह्यौ ह्वे उत्सवित ही रहियौ । जहाँ खड़ी ह्वे , वहीं झूमती रहियौ । 

वृन्दावनिय रस रीति का सहज उत्सव तो राधा अष्टमी है । निकुँज  रीति के उपासक श्रीजी के रस रूप प्रेम प्राकट्य सुख उत्सव में सहज ही भीगकर झूमते हुए उत्सवित हो उठते रहे है । इतने धूमधाम से बहुत ही बहुत कुँज निकुँज में झूम झूम कर यह उत्सव ऐसा मनाया जाता रहा है कि सम्भवतः कोई निराली सहज स्थितियाँ ही कुछ कुँज की उत्सव लहरों में भीग कर और-और रस रंगों में भीगने को दौड़ पड़ती हो अन्य कुँजन में । जैसे श्रीविपिन ही प्रफुल्ल होकर उत्सवित हो गए हो और उनके सहज सरस प्रेम संक्रमण में आये जीव - पदार्थ सब ही उत्सवित होकर यहाँ वहाँ रस रंगों को भर भर कर और माधुरी बलिहार में बौराये फिर रहे हो । श्रीजी के इन सरस उत्सवों से न कोई कभी थका होगा , न ही पूर्ण उत्सवित उन्माद निहारा ही भर होगा । कितना अमृत बरसता है यह तो बिन्दु बिन्दु सहज प्रसाद में पीकर ही कोई अनुभव कर सकता है । भला कौन है जिसने जल की वर्षा के बिंदुओं का भी संचय पूरा पूरा कर ही लिया हो , तब तो मधु धाराओं के रसामृत वर्षण कैसे समेटते बन सके । आज सम्पूर्ण श्रीविपिन उत्सवित है इसी रोमांच से रसिकों में अभिनव किशोरी सेवा लालसाओं की कोपलें खिल कर दौड़ रही होती है श्रीप्रेमधन वृन्दावन की ब्यार में । रसिकों के लिए उत्सवों के उत्सवों का उत्सव है यह ... श्रीनित्य बिहारिणी अलबेली लाडिली जू का नवरूपांकुरन श्रृंगारांकन रस रँग की बिखरी सुख सुभोरी होरी का मधुरांगन उत्सवों की लालसाओं का आँगन ... श्रीजी कौ उत्सव तौ श्रीजी कौ निरालो उत्सव है भईया । सबहिं सुख सेवक हिय ते उत्सव निवेदन करिबो सीख ही लिए होगें विगत कछु माह माहिं , तौ जे न सोचियो कि हम तौ पहुँचे ही ना ह्वे , इतनो सघन उत्सव है कि तनिक ध्यान दै कुँज निकुँजन की चौखट सुं बहतो स्वर सुनि ल्यो , भरि भरि बह चली रस रँग सरिता को मिलाप निरख लियौ , और बलि बलि बलिहारिणी बनी रह्यौ कोमलांगी को सुकोमल उत्सव ... अहा अनुभव कीजौ इतनो कोमल तौ जीवन रहत असम्भव ही स्वप्न रहतौ । इतनो कोमल कि न तूने छुयो , न मैं ही छुई । अति सहज सरस सघन मधुर कोमलोत्सव । युगल तृषित ।  हिय ते तनिक प्रलाप-विषाद न रहवै श्रीजी को उत्सव है ...अबके साँस साँस सुं खेल खेलियौ । 
मोरन करि घनघनि सुं बात 
फुलनि भरि रजनी कौ प्रभात
प्रीति रहवै नित प्रीतम लिपटात
अबकै मीन धरौ चन्द्रिका वर्षण साथ

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