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Showing posts from June, 2021

फूल हुआ , तृषित

*अभी अधुरी है यह ...* Do Not Share ख़्वाब जब ख़ुमार-ए-अब्र  हो उठा और निगाहेशौक़ हुआ  शर्मोसार चश्म ग़श नूरे नर्गिस  आज वो दिले गुल फूल हुआ अंदाज़े शब यें इश्क़ जब कभी बेवज़ह झरोखों से झाँकता अक़्स हुआ दिले इरादों में भरे ख़्यालों की बारिशों से बेपर्दा वो फ़ितूरे आह फूल हुआ जब न हुई ख़लिश हमें शरारती पैमानों से जज़्ब ख़बर सँग गुलबदन हुआ दर्दे ज़ीनत आज निग़ाह चिलमन से ज़िन्दग़ी का नक़्शे ज़िक्र फूल हुआ शबनमी एहसासों की शर्माई में नम ग़ज़ल पर न'ईम वो कुछ झूमा हुआ रूहे-महकी क़ुदरत के ख़ज़ाने से फिसल ख़्वाबे जश्न तबस्सुम फूल हुआ कुछ तो है मुझमें नौ यार फ़िदाई का अज़नबी पाकीज़ा ईरादा बख़्त हुआ बूँद-बूँद की वो आस तृषित , कब यूँ नादिम फ़िज़ाओं की नफ़्स अल-अब्द ज़र्ब-गोशा फूल हुआ टपकती रेशमी हवाओं का रूहे-रँग भीगे महकते सिहरते दिल को छुआ ... हया सरका , प्यार झलका , छुपे ख़्वाब का दीदारे नशां आज फूल हुआ  अत्फ़े अदा के सागर पर नौबहार बदन छू कर जो रँग ए चिराग़ जो हुआ हुआ जो हुआ फिर भी जिसे कुछ ना हुआ वही चश्म-गाह आज फूल हुआ *युगल तृषित* क्रमशः ... ...  ख़ुमार = नशा ,  अब्र = बादल ,  निगाहेशौक़ = सज्ज...

पावस सिद्धान्त , तृषित

*पावस सिद्धान्त* जै रस बढ्यौ मधुर री मदिर सुवास भरि भरि घन सँग पीव  सरस झरि झरि ज्यूँ वल्लरी हरित वलित रँग रँगी बूँदनि जीव *** सरकै सरकै बूँदनि तै होईं घन झारिन भर झर  मचलै मचलै लास रस तै हुलस विलस सर तर *** पीवै कौ प्यास हमहिं की पिलावै कौ प्यास पावस री  सबहिं तृषित वन चर मदिर बरसौ चौ मासो पावस री  *** झरै रस पावस सँग जैईं कौन प्यासो ना जान्यौ  पिलावै जौ रस भरि भरि तै पावस निधि मान्यौ *** घन आतुर बिहरनि , निज प्राणनि दरस मिलै झरै झरै घन-घन , वन-वन और हरे- हरे प्राणनि भरै  ***  दरस पियासौ घन दामिनी लुक छिप जावै आवै  रस कौ गीत रँगनि कौ नाच निरखै प्राण पावै भावै ***  आई आई बूँदनि , सहमै खग फूल अरजै मेह और ही और झारो वन दृग सर कूप सबहिं रिक्त रस दैईं दैईं हित सहज विचारो  *** ना ही गरजौ , सरकै सरकै अबहिं कहाँ कौ चले घन प्रान  सुनि अरज और अरजौ , बरसौ बरसौ पात पात जीवन दान  ***  बिहार फुहारिन कौ अति सरसावै  ,ऊष्ण झारै सरस नखरालौ सबहिं भीष्ण दाहै धरा अकुलावै , घन ह्वै सरस सुख निरालौ *** हुलासनि कौ सहज हुलास , विलासनि कौ सरस ...

भाषा कौतुक , तृषित

भाषा कौतुक *श्री हरिवंश जी*  भगवन मुझे ब्रज भाषा व निकुंजो के शब्द के अर्थ का सही ज्ञान नही है समझ कम आते है। जिससे पूरा लाभ नही मिल पाता। आप कहेंगे कि वणिया गाते सुनते रहिए अपने आप वाणियो के शब्द समझ मे आ जाएंगे लेकिन फिर भी दिक्कत आ रही है ब्रज भाषा समझने में।  आपके लिए तो सहजता है लेकिन हम शुरुआत में ही है अभी यह वाणिया सुनना चालू किए है तो दूसरा क्या उपाय करें क्या कोई ब्रज भाषा सीखने हेतु डिक्शनरी है या कुछ उपाय हो तो बताइए। पक्के होना चाहते है ब्रज भाषा मे ......??? उत्तर -- अनुभव की अपनी भाषा है , वह सहजतम सहज है और वहीं अनुभव तनिक अभिव्यक्त होकर भाषा हो रहा होता है । समझने के लिए उदाहरण है कि एक तो सहज मोर का नृत्य और एक उस नृत्य की नकल से भरा नृत्य । दोनों में अभिव्यक्ति रूपी कला कितनी ही प्रखर होंवें परन्तु शत प्रतिशत मयूर विलास का आन्दोलन नहीं हो सकेगा ।  अभी ही एक आंतरिक संवाद में मुझे उत्तर मिला कि वर्तमान में प्राप्त संस्कृतियाँ भी अब अपभ्रंश ही है , वैसे जगत भोगवाद के लिए जातियों को नहीं मानता परन्तु जातियाँ सभी तत्वों की होती है कला और भाषाओं की भी । यह बा...