फूल हुआ , तृषित
*अभी अधुरी है यह ...* Do Not Share ख़्वाब जब ख़ुमार-ए-अब्र हो उठा और निगाहेशौक़ हुआ शर्मोसार चश्म ग़श नूरे नर्गिस आज वो दिले गुल फूल हुआ अंदाज़े शब यें इश्क़ जब कभी बेवज़ह झरोखों से झाँकता अक़्स हुआ दिले इरादों में भरे ख़्यालों की बारिशों से बेपर्दा वो फ़ितूरे आह फूल हुआ जब न हुई ख़लिश हमें शरारती पैमानों से जज़्ब ख़बर सँग गुलबदन हुआ दर्दे ज़ीनत आज निग़ाह चिलमन से ज़िन्दग़ी का नक़्शे ज़िक्र फूल हुआ शबनमी एहसासों की शर्माई में नम ग़ज़ल पर न'ईम वो कुछ झूमा हुआ रूहे-महकी क़ुदरत के ख़ज़ाने से फिसल ख़्वाबे जश्न तबस्सुम फूल हुआ कुछ तो है मुझमें नौ यार फ़िदाई का अज़नबी पाकीज़ा ईरादा बख़्त हुआ बूँद-बूँद की वो आस तृषित , कब यूँ नादिम फ़िज़ाओं की नफ़्स अल-अब्द ज़र्ब-गोशा फूल हुआ टपकती रेशमी हवाओं का रूहे-रँग भीगे महकते सिहरते दिल को छुआ ... हया सरका , प्यार झलका , छुपे ख़्वाब का दीदारे नशां आज फूल हुआ अत्फ़े अदा के सागर पर नौबहार बदन छू कर जो रँग ए चिराग़ जो हुआ हुआ जो हुआ फिर भी जिसे कुछ ना हुआ वही चश्म-गाह आज फूल हुआ *युगल तृषित* क्रमशः ... ... ख़ुमार = नशा , अब्र = बादल , निगाहेशौक़ = सज्ज...