पावस सिद्धान्त , तृषित
*पावस सिद्धान्त*
जै रस बढ्यौ मधुर री मदिर सुवास भरि भरि घन सँग पीव
सरस झरि झरि ज्यूँ वल्लरी हरित वलित रँग रँगी बूँदनि जीव
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सरकै सरकै बूँदनि तै होईं घन झारिन भर झर
मचलै मचलै लास रस तै हुलस विलस सर तर
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पीवै कौ प्यास हमहिं की पिलावै कौ प्यास पावस री
सबहिं तृषित वन चर मदिर बरसौ चौ मासो पावस री
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झरै रस पावस सँग जैईं कौन प्यासो ना जान्यौ
पिलावै जौ रस भरि भरि तै पावस निधि मान्यौ
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घन आतुर बिहरनि , निज प्राणनि दरस मिलै झरै
झरै घन-घन , वन-वन और हरे- हरे प्राणनि भरै
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दरस पियासौ घन दामिनी लुक छिप जावै आवै
रस कौ गीत रँगनि कौ नाच निरखै प्राण पावै भावै
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आई आई बूँदनि , सहमै खग फूल अरजै मेह और ही और झारो
वन दृग सर कूप सबहिं रिक्त रस दैईं दैईं हित सहज विचारो
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ना ही गरजौ , सरकै सरकै अबहिं कहाँ कौ चले घन प्रान
सुनि अरज और अरजौ , बरसौ बरसौ पात पात जीवन दान
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बिहार फुहारिन कौ अति सरसावै ,ऊष्ण झारै सरस नखरालौ
सबहिं भीष्ण दाहै धरा अकुलावै , घन ह्वै सरस सुख निरालौ
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हुलासनि कौ सहज हुलास , विलासनि कौ सरस विलास , सघन पावस आयौ
रस रज सबहिं कौ श्रृंगार , घुमड़ि घुमड़ि हिंडौल बेस लैईं , बहु उत्सव पावस लायौ
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झूमि झूमि झुम रस बरसायौ , झुम झूम रसबिन्दु नृत पढायौ
दमकै झमकै भरि टपकै बिन्दु , सरितहिं बहु भरि भरि झुमायौ
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झूम झूम हिय भरित लता सजहिं सरित बहै रसाल चली
सर सर झूमै झारिन खेल की पावस आजु तू कित चली
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एईं पावस दृगनि तैईं रहियौ , औरहिं रस हुलास दामिनी सँग रास भरियौ
घन जोईं नाचै दै दै रस ऐसो ललित मद , तृषित अलिन नैन झारी मलियौ
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गह्वर हरित सघन ललित सारँग सुख सँग सँग हुलसन
मदमत्त सुरँग झर झरण गर्विलौ मल्हार रँग रँग सुनन्दन
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बूँदनि बूँदनि मालिका भई हिलमिल हरित हिंडोर बरस्यौ
ललित केलि घन दामिनी के रँग छिरक झरक सुभग खेल हुलस्यौ
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साँझ माँझ की गाँझ झाँझ सबहिं एक हिंडोर भरवै हेत घन बाज्यौ
दृगनि दृगनि जबहिं झूमैं री हरित चुनर री घनदामिनी उर सुख गाज्यौ
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जै चुनर ना सिमटी जावें री , बूँद बूँद पहनी झूम झूम सज धावै री
विपिन सुख अलबेली वर्षण , भृंग भृंगनि टेर मोर मोर नाच गावै री
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... क्रमशः ...
*युगल तृषित*
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