पावस सिद्धान्त , तृषित

*पावस सिद्धान्त*



जै रस बढ्यौ मधुर री मदिर सुवास भरि भरि घन सँग पीव 


सरस झरि झरि ज्यूँ वल्लरी हरित वलित रँग रँगी बूँदनि जीव



***



सरकै सरकै बूँदनि तै होईं घन झारिन भर झर 


मचलै मचलै लास रस तै हुलस विलस सर तर



***



पीवै कौ प्यास हमहिं की पिलावै कौ प्यास पावस री 


सबहिं तृषित वन चर मदिर बरसौ चौ मासो पावस री 



***



झरै रस पावस सँग जैईं कौन प्यासो ना जान्यौ 


पिलावै जौ रस भरि भरि तै पावस निधि मान्यौ



***



घन आतुर बिहरनि , निज प्राणनि दरस मिलै झरै


झरै घन-घन , वन-वन और हरे- हरे प्राणनि भरै 



*** 



दरस पियासौ घन दामिनी लुक छिप जावै आवै 


रस कौ गीत रँगनि कौ नाच निरखै प्राण पावै भावै



*** 



आई आई बूँदनि , सहमै खग फूल अरजै मेह और ही और झारो


वन दृग सर कूप सबहिं रिक्त रस दैईं दैईं हित सहज विचारो 



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ना ही गरजौ , सरकै सरकै अबहिं कहाँ कौ चले घन प्रान 


सुनि अरज और अरजौ , बरसौ बरसौ पात पात जीवन दान 



*** 



बिहार फुहारिन कौ अति सरसावै  ,ऊष्ण झारै सरस नखरालौ


सबहिं भीष्ण दाहै धरा अकुलावै , घन ह्वै सरस सुख निरालौ



***



हुलासनि कौ सहज हुलास , विलासनि कौ सरस विलास , सघन पावस आयौ


रस रज सबहिं कौ श्रृंगार , घुमड़ि घुमड़ि हिंडौल बेस लैईं , बहु उत्सव पावस लायौ



***



झूमि झूमि झुम रस बरसायौ , झुम झूम रसबिन्दु नृत पढायौ


दमकै झमकै भरि टपकै बिन्दु , सरितहिं बहु भरि भरि झुमायौ



***



झूम झूम हिय भरित लता सजहिं सरित बहै रसाल चली 


सर सर झूमै झारिन खेल की पावस आजु तू कित चली



***



एईं पावस दृगनि तैईं रहियौ , औरहिं रस हुलास दामिनी सँग रास भरियौ


घन जोईं नाचै दै दै रस ऐसो ललित मद , तृषित अलिन नैन झारी मलियौ   



***



गह्वर हरित सघन ललित सारँग सुख सँग सँग हुलसन 


मदमत्त सुरँग झर झरण गर्विलौ मल्हार रँग रँग सुनन्दन



***



बूँदनि बूँदनि मालिका भई हिलमिल हरित हिंडोर बरस्यौ


ललित केलि घन दामिनी के रँग छिरक झरक सुभग खेल हुलस्यौ



***



साँझ माँझ की गाँझ झाँझ सबहिं एक हिंडोर भरवै हेत घन बाज्यौ


दृगनि दृगनि जबहिं झूमैं री हरित चुनर री घनदामिनी उर सुख गाज्यौ



***



जै चुनर ना सिमटी जावें री , बूँद बूँद पहनी झूम झूम सज धावै री


विपिन सुख अलबेली वर्षण , भृंग भृंगनि टेर मोर मोर नाच गावै री


***


... क्रमशः ...


*युगल तृषित*

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