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निकुँज संवाद शैली , तृषित

श्री निकुँज की संवाद शैली (भाषा शैली) हित है अर्थात् नाद बिन्दु । पुहुपों के मध्य मकरन्द की झँकन का परिमलित सुवास बिन्दु । ऐसी ही शैली यहाँ भी प्रकृति में कही कही संवादात्मक है ।  श्री निकुँज की रूप दर्शन शैली ललित है । और और सौन्दर्य रँगन  करते नवल अनुरागों की प्राण लालसा ।  जो संवाद नैनों मध्य सुख हो रहा हो वह भी ललित है ।  और जो दर्शन श्रवणपुटों में रूपाकृति पिरो रहे हो वह ब्यारित दर्शन भी हित श्रृंगार है ।  ललितहित भरित अलिन अलिन का निज हित हित ही ललित परागिनी हो मधुरित कर रहा श्रीवन ।  श्रीवन जो प्रमुदित मुदित उत्सवित हो विलास की स्निग्धाई से अभिसारों के रँगन रोके नहीं रोक पा रहे , वह सहज ही नित्य ललित हितोत्सव में शरदित घनाच्छादन कलित सरोवर हो रहे है । युगल तृषित ।  श्रीललितं ... श्रीवृन्दावन । जैजै श्रीश्यामाश्याम जी ।

बाह्य और भीतर के दर्शन में मर्म शून्यता से हानि , तृषित

एक ग्रुप में *आम तोड़ लीला* शीर्षक से श्रीयुगल के आम तोड़ने की प्रतियोगिता को लीला रूप लिखित साँझा किया गया ।  उसी विषय हेत कुछ निवेदन यह ...  ध्यान देने का विषय यह है कि ...  श्रीयुगल की ललित निकुँज माधुरी लीलाएँ उनकी ही निजतम मधुतम निभृत केलिमाधुरियों की सुरभ-सुवास के रिसाव से उत्सवित है ।  श्रीनिकुंज ही नहीं प्राकृत धरा पर भी ऐसे कई सामान्य खग है जो फलों को बिन तोड़े सेवन कर सकते है ।  श्री निकुँज में भोग रसों को संचय करने की पृथक आवश्यकता नहीं ज्यों सागर को जल संचय करने की आवश्यकता नहीं ।  श्रीनिकुंज स्वयं ही श्रीललित पियप्यारी की निजतम प्रकट निधि ही है । जैसे कि लौकिक रूप से कहे तो तिजोरी के खजाने से कोई आँगन सजाए हो ।। श्री निकुँज में लताएँ और उनके स्वरूप बाह्य की भाँति मात्र नहीं है । फल आदि रस वत ही है । वह ब्यार आदि से छिरक सकते है ...फुहार हो सकते है । जैसे नव-नव श्रीलता श्री के निजतम उत्स से प्रकट स्वेद बिन्दु ।।  तोड़ने के लिये प्रथम तो प्रेम शून्यता चाहिये । दूसरी बात कि आवश्यकता भी नहीं है तोड़ने की क्योंकि लताएँ इतना रस सहज ही ढहा देती है जैस...

अलि दशा

अलि वह भावदशा है जो प्रकट फल या पुहुप के स्वरूप-स्वभाव को कष्ट ना पहुँचा कर अपितु केलि श्रृंगार रचते हुए निजतम स्वामिनी हेत मधु संचय करें ।  ... केलि रूपी मज्जन या मर्दन भी और नवीन लास्यमय ललित रूप सौन्दर्य उन्माद का रँगोत्सव है ...केलि चकोर में प्रतिक्षण सेवा की लहरें और उत्सवित हो रही होती है । युगल तृषित । श्रीवृन्दावन ।  सेवा लहरों से रचित प्रेम द्वीप का ललितम मधुतम उत्सव जहाँ झूम रहा हो ऐसे हिय सरोवरों में स्फुरित प्रफुल्ल होते है श्रीविपिन रूपी विलास पँकज ... कमल कुँजन ।