निकुँज संवाद शैली , तृषित
श्री निकुँज की संवाद शैली (भाषा शैली) हित है अर्थात् नाद बिन्दु । पुहुपों के मध्य मकरन्द की झँकन का परिमलित सुवास बिन्दु । ऐसी ही शैली यहाँ भी प्रकृति में कही कही संवादात्मक है । श्री निकुँज की रूप दर्शन शैली ललित है । और और सौन्दर्य रँगन करते नवल अनुरागों की प्राण लालसा । जो संवाद नैनों मध्य सुख हो रहा हो वह भी ललित है । और जो दर्शन श्रवणपुटों में रूपाकृति पिरो रहे हो वह ब्यारित दर्शन भी हित श्रृंगार है । ललितहित भरित अलिन अलिन का निज हित हित ही ललित परागिनी हो मधुरित कर रहा श्रीवन । श्रीवन जो प्रमुदित मुदित उत्सवित हो विलास की स्निग्धाई से अभिसारों के रँगन रोके नहीं रोक पा रहे , वह सहज ही नित्य ललित हितोत्सव में शरदित घनाच्छादन कलित सरोवर हो रहे है । युगल तृषित । श्रीललितं ... श्रीवृन्दावन । जैजै श्रीश्यामाश्याम जी ।