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Showing posts from July, 2022

वन और राजमार्ग , तृषित

एक परिभाषा लेकर जो तुम झरोखों से झाँक रही हो ...  ... किन्हीं दिव्य सन्त की राह जोह रही हो  प्रथम प्रेम को समझो  जो इसे समझना है तो भीतर सीढियां उतरो ... उतर रही हो जो प्रेम में  तब प्रेमियों के कौतुक झेलो  प्रेम तुमने अध्याय मान बाँच लिया  हो ...  प्रेम तुमने कहीं आकृतियों में छू लिया हो  प्रेम रहस्यों का सार पा , प्रेमियों से आभार भर लिया हो  तब भी प्रेम भरे प्रेमी को निभा सकोगी , यह अचरज ही है ... जो तेरे-मेरे या इनके-उनके दायरों में ना सिमटे  वह है प्रेमी ... जिसे तुम-मैं या यह-वह सब पाकर भी पहचान ना सकें  वह है प्रेमी ... जिससे  मिलो तब ही बसन्त भर झूम जाओ  जीवन का कोई नया ही रँग छू कर बाँवरी ही रह जाओ  प्रेम की कनिष्ठिका पर टिका है  तेरे मेरे कौतूहलों का रसवर्द्धन पुहुप-वन हे राजमार्गों के पथिक ... सघन वन में शब्द झँकन से झूमी सारँगिनी के  हरित घर्षण मज्जन वीथियों में तुम भी यूँ ही  झूमते हुए दौड़ सकोंगे ... स्मृत रहें कि वह नाद-शब्द और पथ और सारँगिनी की चाल  ... नवीन होगी , किन्हीं अभ्यासों स...

प्रेमी और सन्त , तृषित

प्रेमी और सन्त सहजता तो यह है कि प्रेमी ही सहज सन्त है या सहज सरल सन्त निश्चित ही प्रेमी ही है ।  ... तदपि भिन्न-भिन्न माँग और दायरों से सिमटी परिभाषाओं को अनुभव कर भी उनमें जो समाहित हो सिमट जावें , वें है सन्त , और किन्ही भी बन्धनों के पार परन्तु सहजताओ के सन्निकट सरस महोत्सवों के केंद्रित से जीवन ... प्रेमी है ।  तनिक भी पृथकता है नहीं प्रेमी और सन्त में परन्तु मान्यताओं का आन्दोलन तो है ही ।  प्रेमी निर्दोष सरल जीवन है , कोई दोष ना होने पर भी समाज ऐसे सँग से सहज सँकोच करता है अथवा वें प्रेमी ही सँकोच रखते है । ...पावस ऋतु और अनवरत वर्षा एवं नदियों में तैरने का लोभ ... भावी बाढ में डूबने की तैयारी ही है ।  ऐसे में सुविज्ञ जन नदियों पर बाँध के आयोजनों को स्थापित करते ही है ... वही बन्धन लोकार्थ आवरण है ।  उन्मादित नदियों का सहज स्नात सँग जैसे प्राण रक्षा के लिये कठिन ही है त्यों प्रेंमियों के आवेशों का सँग ।  ... नदी की उन्मत्ता से संकट होने पर भी जल से जीवन की मैत्री रहनी ही है सो आवश्यक है सुधीर - गम्भीर - शान्त ...सरल सन्त सँग । सन्तत्व की झाँकी हो परन...