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Showing posts from 2015

गले में फोड़े से निजात नही , भजन में जरूरी ही होगये

जय जय श्यामा श्याम । महाराज श्री राजेंद्रदास जी की वाणी में एक ब्रज प्रेम का का दृष्टान्त सुना । तब से निवेदन का मन हो रहा है । प्रेमी को अन्य कोई दुःख नहीं केवल भजन बाधा के । क...

भगवान के समान दूसरा कौन है

सब लोग अपने मतलबसे प्रेम करते हैं । बिना मतलब प्रेम करनेवाले भगवान् और उनके भक्त ही हैं । अगर वे हमें अच्छे लगने लग जायँ तो हम सन्त बन जायँगे, ऊँचे बन जायँगे । परन्तु झूठ, कपट, ब...

वार्ता प्रभु से की कर्म पर 18 11 2015

और स्व को भी परिवर्तन नही करना । स्व का बोध भर करना है । धूल भर हटानी है । नहाने का अभिनय नही । पूर्ण सच्चा स्नान करना है बस भजन सुनने से विश्वपरिवर्तन नही हो सकता। जीवन को भजन ब...

दम्भ या भजन

क्यों ? भजन क्यों ? परम् धार्मिकता प्रतित होती है ... सर्वत्र ही ... भीतर क्या चाहता है ? क्या अनुराग हो गया है या भय कोई गुढ कामना ..... अथवा दम्भ !! यें किन्हीं अन्य से नहीं भीतर  से ही उठत...

मलूकदास जी महाराज जी वाणी

मलूकदास जी की कुछ वाणी ना वह रीझै जप तप कीन्हे, ना आतमका जारे। ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥ दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी। अपना-सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अ...

संतश्री मलूक दास जी ।

    संत मलूक जी कहते हैं कि                       ----------------- ------------                भेष फकीरी जे करै, मन नहिं आये हाथ।              दिल फकीरी जे हो रहे, साहेब तिनके साथ।             ‘‘साधुओं ...