भगवान के समान दूसरा कौन है
सब लोग अपने मतलबसे प्रेम करते हैं । बिना मतलब प्रेम करनेवाले भगवान् और उनके भक्त ही हैं । अगर वे हमें अच्छे लगने लग जायँ तो हम सन्त बन जायँगे, ऊँचे बन जायँगे । परन्तु झूठ, कपट, बेईमानी, ठगी, धोखेबाजी अच्छी लगेगी तो नीचे बन जायँगे । अपनी तरफ देखें कि क्या दशा है ? सत्संग कितने वर्षोंसे कर रहे हैं और भगवान्के नजदीक कितने गये हैं ? विचार करें । रुपये कितने प्यारे लगते हैं, पर चट हाथसे निकल जाते हैं । फिर भी हाय रुपया, हाय रुपया करते हो ! रुपया आपको याद नहीं करता । पर भगवान् आपको याद करते हैं, आपकी रक्षा करते हैं, सहायता करते हैं । भगवान्के समान दूसरा कौन है ?
उमा राम सम हित जग माहीं ।
गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ॥
(मानस, किष्किंधा॰ १२ । १)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
● श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
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