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Showing posts from November, 2015

भगवान के समान दूसरा कौन है

सब लोग अपने मतलबसे प्रेम करते हैं । बिना मतलब प्रेम करनेवाले भगवान् और उनके भक्त ही हैं । अगर वे हमें अच्छे लगने लग जायँ तो हम सन्त बन जायँगे, ऊँचे बन जायँगे । परन्तु झूठ, कपट, ब...

वार्ता प्रभु से की कर्म पर 18 11 2015

और स्व को भी परिवर्तन नही करना । स्व का बोध भर करना है । धूल भर हटानी है । नहाने का अभिनय नही । पूर्ण सच्चा स्नान करना है बस भजन सुनने से विश्वपरिवर्तन नही हो सकता। जीवन को भजन ब...

दम्भ या भजन

क्यों ? भजन क्यों ? परम् धार्मिकता प्रतित होती है ... सर्वत्र ही ... भीतर क्या चाहता है ? क्या अनुराग हो गया है या भय कोई गुढ कामना ..... अथवा दम्भ !! यें किन्हीं अन्य से नहीं भीतर  से ही उठत...