ताप सँग , तृषित
ताप सँग में ही ताप का निदान है । ताप भरित स्थितियों के ताप निदान में प्रायः ताप ही भोगवत पाया जाता । अग्नि का अग्नि से संयोग होने पर अग्नि असहज नहीं होती परन्तु जल के शीतल छींटे से प्रदाहित स्थितियों का अनुभव बन ही जाता है । झुलसता जीव उष्णोदक पान कर बाह्य झुलसन की विस्मृति को उष्ण भोग से निदान करता है । शीतल पेय सँग ऐसी श्रमिक स्थितियाँ उष्ण भास्कर प्रभाओं के सँग पूर्व में ही पराजित युद्ध नहीं कर सकती । त्यों ही शीतकाल मे शीतल जल से स्नान ही शीतलता का आदरवत स्वीकार्य है और प्रायः ऐसा करने वाली स्थितियो को पता है कि शीत काल के शीतल जल स्नान से शीतलता को सहन करने का सामर्थ्य जितना मिलता है उतनी ही कँपकँपी कम रहती है । शरद लालायित स्थितियों को जलवायु के तापमान को सहज ग्रहण कर सँग करना चाहिये , अगर भीतर जीव स्थिति ही है क्योंकि शरणागत को शरण्य स्वामी की सभी भेंट स्वीकार होनी ही चाहिए । विधान की प्रत्येक स्थितियाँ जैसे जलवायु भी साधक का सृजन करती है । अगर आप विरहित या दाहित या व्याकुलित है तो आपकी देह भी उष्णकाल में भी शीतल जल भी नहीं माँगेगी । प्रायः उष्ण जल पान से जठराग्नि के अग्नि ...