सुख वर्षा , तृषित
*सुख वर्षा*
ले लो न अपने सुख , मेरे हृदय से आन्दोलित रोम-रोम में बहते रस से अपना सुख पी ही लो न । साँस-साँस में हो ऐसी नई सुगन्ध इन फूलों सी कि मैं छूटना भी चाहूँ तो अर्क (इत्र) बनकर भिगोती रहूँ तुम्हें । देह को छूते जलवायु सब से तुम्हे ही सुख हो । श्रवणों में आती ध्वनियों से भी केवल तुम्हें ही सुख हो । आँखों मे भरे प्रत्येक दृश्य से भी तुम्हें रस मिल रहा हो । जिह्वा पर आया अर्द्ध अक्षर भी तुम्हें ही आह्लादित करता हो । मेरे चलने से भी आपके कुँज-कुँज बिहार की सिद्धि हो । मेरे हाथों में आई प्रत्येक सेवा वस्तु भी तुम्हारा श्रृंगार ही गूँथ रही हो । मेरे रोम रोम में केवल आपके ही सुखों की ललक हो । मेरे भोगों या भोजन से स्वाद - रस सब तुम्हे ही हो । मेरे विश्राम या शयन से आपका ही सेज सुख और गहन हो । प्राण प्राण मेरा फूल-फूल होकर आपके कोमल मधुर रसीले सुगन्धित सुखों को खोजने को बाँवरे हो उठे । आपको जिससे सुख नहीं वह वस्तु - व्यक्ति - स्थिति मेरे सँग आवें ही नहीं और जहाँ - जहाँ आपका सुख ही सजता हो वहाँ वहाँ की रज सेवा मेरा जीवन हो जावें । मैं पागल हो जाऊं आपके सुख हेतु ही , आपके सुखों की प्यास से मुझे कभी मुक्ति ही न मिलें । अगर किसी क्षण मेरे पास आपका कोई सुख नहीं तो उन उन क्षणों में मुझे मृत्यु वत पीड़ा हो और जब-जब मुझे आपका सुख ही छू जावें तब-तब मेरा नया जीवन हो उठे । आपके सुखों की कलि - फूल होकर सुख मंजरियों की दासी रह जाऊँ । अब मुझे तब ही सुख छुवै जब आपको सुख होता हो । वरण मेरा जीवन दाह हो उठे और वह दाह भी किन्हीं रसिक भोग सेवक द्वारा दूध में उबलते धान्य (चावल) वत कभी न कभी मीठी क्षीरान्न (खीर) होकर आपके सन्मुख हो भोग होने को लालयित रहें । क्षण-क्षण ...साँस-साँस से आपको सुख ही नहीं हो तो मैं क्यो हूँ । मुझे वह पथ दो जिसमें आपका नित्य सुख हो , हे सुखों के रसिक ... ऐसी रस रीति में डुबो दो कि आपको आपके निज सुख सेविकाओं से प्राप्त सुख ही जहाँ नित्य उत्सवित हो । आपका एक-एक सुख मेरे प्राणों का हियोत्सव हो । आपकी एक-एक सेवा की सेवा मेरे जीवन का सार हो सकें । आपके एक-एक सुख श्रृंगार का नाम गुण कीर्तन मुझे सुनने गाने को मिलें । हे पियप्यारी आपको सुख हो तो यह तृषित जीवन ही हो । हे श्यामाश्याम आपको सुख हो । हे श्रीराधा माधव आप पर मीठे सुख बरसते हो । युगल तृषित मेरे प्राण युगल आपकी सभी सुख तृषा सुख वर्षा में भीगती रहवै । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।
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