khwab ख़्वाब

ख़्वाबे आरज़ु बांहों में आपकी मिली म़ौत ज़िन्दग़ी हो गई
उम्मीदें रुसवाई ग़र मज़ाक़ भी हुई ज़िन्दग़ी मौत हो गई

खोये है व़क्त बेव़क्त नज़रों की ज़रुरत आहटें हो गई
रोके बहुत आद़तन अश्क़ गिरे क़ागज पर ग़ज़ल हो गई

शायद आईना ना देखा हमनें हसरतें हुज़ुर को हो गई
अन्दर फुदकती मुहब्बत की शिक़ाय़त हाज़री हो गई

उड चले जो हवाओं में महफिलें फ़िज़ा हो गई
हक़ीक़ते तमन्ना कहाँ ख़्वाबे ज़िन्दग़ी हो गई

"तृषित" दुआ ना मानी ख़ुद़ा ने व़क्त की ईनाय़त हो गई
द़िल्लगी हम ना किये हब़ीब की म़न्नत क़ुब़ुल हो गई

हरक़ते आतिश घायल थे फ़िर सजना उनका सज़ा हो गई
हर रोज़ की खुशब़ु में बेहोश हुये युं रातें फिर सहर हो गई
                - सत्यजीत "तृषित"

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