मलूकदास जी की कुछ वाणी ना वह रीझै जप तप कीन्हे, ना आतमका जारे। ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥ दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी। अपना-सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अ...
मलूकदास जी की कुछ वाणी ना वह रीझै जप तप कीन्हे, ना आतमका जारे। ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥ दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी। अपना-सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अ...
मकां ... अब क्यों उस मकां की यादें नहीं आती ! जहाँ ज़िन्दगी एक क़िताब बनी ! बहुत कुछ दिया उस मकां ने पर जब लिया सदा ख़ुद कर्ज़दार हो गया ! बचपन की सलवटें कब की सिसकियों में दफ़न हो ग...
खण्डहरों में क्यों भाग कर छिप जाने का दिल करता था भरे पूरे घर से बेहतर क्यों खण्डहरों के जाले हटा कर झांकने की तलब ... कुछ तो ख़ास होता है उन बिखरी दीवारों में एक एहसास हवेली से ...
गांवों में मेरा मन्दिर रहा कस्बों से मेरी यारी रही और ज़िन्दग़ी शहरों के तलवे चाटती रही !!! एक बस्ती सोची थी जिसकी रूह गांवों के खेत की सुबह से चुराई हो एक बस्ती जिसका ज़ुनून ...
कौन है सत्यजीत तृषित ? अब तक सवाल है कुछ पुछ लेते है कुछ नहीं ! किसी को बताया नही कुछ क्योंकि एक तो बताने सा कुछ नहीं , दूसरा बताना सीमित करता है | कौन हो ? क्या करते हो ? आदि सवाल बहु...