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Showing posts from March, 2018

समीपता में रस भोग न हो तो एकता हो , तृषित

समीपता में रस भोग न हो तो एकता हो , तृषित एक मंजिल की कुछ पगडंडियाँ हो गई हो तो सबको लगता सही पर वह चल रहा है । शेष गलत । सब विधि , सब सूत्र पँहुचते है । प्यारे जु तक जाने की कोई विधि ...

गेंद , तृषित

जानते है आज के हम विषयी-प्रपञ्चियों के लिये सबसे अच्छा सुखमय खेल कौनसा है ... किन्हीं ने मुझसे पूछा कि आजकल बहुत कम लिखते है आप ... ।।। कई कारण है इस बात के उनमें एक कारण यहां कह रहा ...

सन्त सँग अथवा निज लोभ

निज स्वार्थ के लिये गए सन्त सँग से उत्तम है , पँचर की दुकान खोल ली जावें । सन्त सँग वही करें जो उनकी सेवा में डूबना चाहता हो और वह सेवा किसी अन्य लालसा से भरी न हो । जो सन्त सँग कि...

लालसा और आस्वादन , तृषित

सम्पूर्ण जीवनों के जीवनपुँज श्रीप्रियाप्रियतम के सरस् भाव जीवन को सुगन्धित कर देने वाला कोई कोई ही जीवन होता है जो भावप्रीत का आह्लाद भरा समुद्र  भीतर कुछ कुछ अनुभव कर  ...

सब्क्राइब कौन करते है चैनल ???

हमारा चैनल कौन सब्क्राइब करते है ... प्रपञ्च में रहकर भी जिन्हें भजन भाव मे रस सिद्ध है जो नित्य रस के मर्म को समझते है और क्षणभंगुर जगत से सार तत्व को ही पीते है ।

भावात्मक तलाश - पँचभौतिकी नहीं , तृषित

*सेवा-प्रेम की भावात्मक तलाश होवें पंचभौतिकी भर नहीं* सभी देह भर को सत्य समझते है जी आज  जबकि सत्य तो दुल्हन सा है और देह केवल घूँघट भर है उसका। दृश्य का मूल केवल शब्द समझे तो क...

स्वार्थ सिद्धि भक्ति नहीं होती , तृषित

स्वार्थ सिद्धि कुछ भी हो वह भक्ति नही होती । भले भगवन प्रकट हो जावें तप या किसी भी साधन से पर प्रकट सकामता हेतु किये गए तो भक्ति नही हुई । भक्ति में भगवान को प्रकट होने के लिये ...