भावात्मक तलाश - पँचभौतिकी नहीं , तृषित

*सेवा-प्रेम की भावात्मक तलाश होवें पंचभौतिकी भर नहीं*

सभी देह भर को सत्य समझते है जी आज  जबकि सत्य तो दुल्हन सा है और देह केवल घूँघट भर है उसका। दृश्य का मूल केवल शब्द समझे तो कभी नाद , फिर कभी नाद का मन्द्र स्वर मौन भी समझे । किसी का मौन समझे तो अपने मौन को तलाशें । अपने मौन से प्रेम हो तो शेष में सम्पूर्ण रस को अनुभूत  करने के लिये इन्द्रियाँ प्राकृत नहीं अप्राकृत स्वरूप का आस्वादन करें । अप्राकृत आस्वादन होने पर भावात्मक-रूप और भाव-सौंदय की ही सेवा - पूजन हम हो पावे । तृषित ।

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