प्रीति-प्रियतम उन्हें ऐसे सौन्दर्य लावण्य माधुर्य की पिपासा है ...जिसकी स्मृति से ही उनके ही दिव्य देह चराचर जगत प्रेमासक्त हो उनके प्रति आकर्षित होते है । जो खेंचता है ...वह ...
कहूँ दिखै ह्वे प्रेम ?? प्रेम ... यह वह निरुपम दिव्य पदार्थ है जिसका दर्शन सम्भव नहीं । जब यह है तब तो कदापि यह घोषणा करता ही नहीं कि मैं यहाँ हूँ ... प्रेम ! आज प्रदर्शनवादी यूग है , चह...
*निभृत* निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श...
*रूप विश्राम* मधुर मन्द श्री श्यामसुन्दर के मुस्कान पर । मुस्कान यहाँ हमारे हृदय का दिव्योत्तम श्रृंगार ही है । एक हास्य नहीँ जैसे हास्य की माला ही हो इनकी सहज मुस्कान पर ।...
*चिन्तन* समस्त चिन्तन चिन्तनों से छूटने को होवें । तब वह विशुद्ध होते हुये प्रेम वल्लरी के फूलों से अभिन्न कर देंगे । चिन्तन आत्म अवलोकन है , स्वयं को दिखाता है । स्व का विकास ...