वास्तविक झँकन , युगल तृषित

वास्तविकता का कोई आवरण नहीं होता और वास्तविकता को कहीं से भी ग्रहण कर सकें वह सहज पथिक है । 
जिनकी चेतन गति जड़ता में है वें  ही जीवाणु फूल को भी सड़ा देते है और जो सहज सुरभ चेतन का पर्याय वह सहज सामान्य या निःसार में सुगन्ध भर उन्हें चेतन गुण से भर देती है । 
असली मछली वह है जो सरोवर कोई हो परन्तु उन सरोवरों की एक ही स्थिर स्वभाव की सुभगित चेतना हो । अर्थात् गुलाब का भोक्ता कीट अन्य फूलों से भी गुलाब ही परमाणु लें । 
संकीर्णता में चेतना नहीं रहती और भौतिक विस्तरण में अप्रकट होती जाती है । जैसे कि चींटी से वन की सत्ता नहीं सम्भल सकती त्यों अत्यधिक भौतिक विस्तरण से चेतन स्पर्श में हानि हो सकती है । क्योंकि जो भी सँग एकत्र होंगे वह वस्तु-दशा की परिभाषाएँ अपेक्षा करेंगे और वास्तविकता सदैव परिभाषाओं से सङ्कोच कर सिमटी रहना चाहती है । अर्थात् अगर सभी नीम के पेड़ को सहज पहचानते है तो वह सहजता से सार्वजनिक चेतन है । उसी नीम को सब भिन्न भिन्न भावना से जानते या मानते है तो यह भिन्नता उसकी चेतना का विघटन करेंगी । सो स्वमुखी दोहरी जड़ता का वितरक होता है क्योंकि उसके दर्शन में अपने सुखों की सीमाएं होती है जबकि सहज सेवक दोहरे चेतन की लहर हो सकता क्योंकि सेवा हेत प्रकट सहज विपुलता से सन्मुख दिव्यता अनुभव होती है और सेवा होने के उन्माद से सहज चेतना विस्तृत जीवन्त हो उठती बहती है । युगल तृषित । जय जय श्रीश्यामाश्याम जी ।

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