उत्सव , युगल तृषित
*उत्सव*
आनन्द का विपुल समुद्र है उत्सव
चेतना की नित्य चेतन लालसा है उत्सव
जाग्रत स्वप्न सुक्षुप्ति का दिव्य पारितोष है उत्सव
रसमय प्रेमिल तटों के मध्य बहती नदी है उत्सव
सच्चिदानंद अभामण्डल का संस्पर्श है उत्सव
सहज शरणागत का नित्य जीवन है उत्सव
कर्तापन सहित श्रम में अदृश्य है उत्सव जबकि दासत्व भरित सेवाओं से और मधुरित होता है उत्सव
शोर - कौलाहल से परे प्रशान्त कलरव सलिताओं से उमंगित है उत्सव
ललित चेतन सुगन्ध और अनुराग की मधु वर्षा है उत्सव
द्वन्द और प्रपञ्च की संरचनाओं में आभासित होकर भी अस्पर्शित है उत्सव (जैसे ना बरसने वाले बादल)
दो लहराती ललित वलित लतावत चेतनाओं के मध्य सुरँग लास्यमय केलि है उत्सव
प्रायः अदृश्य है उत्सव और सार्वभौमिक तृषित लालसा है उत्सव
रसिक प्रेमियों के आश्रय में पुलकित फलित रँगमय मधुरित है उत्सव
*युगल तृषित*
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