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Showing posts from June, 2018

भावना , तृषित

*भावना* समुद्र को अंजली में पी जाना भले आसान होवें परन्तु प्रेम का उद्घाटन सर्वथा अनिवर्चनीय है । अब प्रश्न उठता है कि जिस विषय को बांचना ही असम्भव है उसी विषय की निरन्तर चर...

प्रेम ही प्रेम को खींचता है , तृषित

प्रेम ही प्रेम को खींचता है चुम्बक तो फिर भी लौह को खींचता है परन्तु प्रेम तो प्रेम को ही खींचता है । कर्षयती... इति ... वह खींचते है ...परन्तु तनिक नयन को खोल कर यह स्वप्ननगरी मायाल...

पूजन , तृषित

*पूजन* नावार्थी हि भवेत्तावद् यावत् पारं न गच्छति । उत्तीर्णे तु सरितपारे नावा वा किं प्रयोजनम् ।। श्रीगुरु और भगवत्कृपा से उपलब्ध पूजन के सभी उपचार भगवतोन्मुखी होकर उन...

तृषा-अनादर , तृषित

*तृषा-अनादर* कोई नौकरी प्राप्त कर ही मनुष्य चुप नही होता है , वह तब भी छटपटाता है ...बेहतर वेतन के लिये । और वेतन वृद्धि के सभी उपाय करता है । क्या नौकरी मिलने पर प्राप्त वेतन ही को...