नागर नयन
नागर नेह निहारत नैननि।
आतुर ह्वै न चलै चकि चौंप सौं चातुर चाहिए रहे चित चैननि।
मौनही मौन में मान मनाइ मिलाइ लिये मन सौं मन मैननि।।
श्रीबिहारिनिदासि विलोकि वधू वन वृंद विनोद बढ़ै बिनु बैननि।
नित नवीन निकुंज में नागरि नागर नेह निहारत नैननि।।
अँखियाँ नहीं देति अलिंगन सौं।
सारु में चारु निहारि बिहारिनि मर्दत मान मदन की मौं।
और कहाँ लौं कहौं न कही परै कोक कला कल केलि की खौं।।
श्रीबिहारिनिदासि दुलारी कौ दूलहु ताकि रह्यौ तरुनी तन तौं।
यह काम कला पुनि मेंटि अली अँखियाँ नहीं देति अलिंगन सौं।।
सुन्दर नैन सुहावने,निरखत प्रेम प्रवीन।
अवलोकत इकटक रहैं,वदन सुधा रस लीन।।
तन में तन नैननि में नैना।मन में मन बैननि में बैना।।
ऐसै रहौ रसिक वर चैना।श्री ललितकिसोरी के उर ऐना।।
उपजत कोटिक मैननि सैना।छिन छिन आनन्द अति ही लैना।।
लड़ैती तेरे नैना री अति फूले।
प्रगट करत हिय के अनुरागहि रंग हिंडोरे झूले।।
निरखि लाल आनन्द बढ़ायौ भाग्य हमारे खूले।
श्री हरिदासी के रस पोषे सदा केलि अनुकूले।।
खेलत लाड़िली रस मत्त सु घूमत नैना।
दुहूँ ओर अनुराग बढ़्यौ है चैन न पावत मैना।।
मिलि मिलि मिलि मुसिक्यात छबीले कहत रंगीले बैना।
श्री कुंज बिहारिनि ललितकिसोरी सदा लाल सुख दैना।।
घूमत नैन रूप रस माते।
चाहत मिल्यौ मिलन ही की रति छिन छिन प्रति हुलसाते।।
परम उदार सिरोमनि सुख निधि मंद मंद मुसिक्याते।
जान्यौं लाल ललित के हित कौं इनहीं के रंग राते।।
कृपा दृष्टि जब प्रिया निहारैं।रीझि रीझि पिय प्राननि वारैं।।
उमँगि उमँगि अंकौं भरि लेहिं।रोम रोम सचु पावैं जेहीं।।
बिहारी तेरे नैना रूप भरे।
निरखि निरखि प्यारी राधे कौं अनत न कहूँ टरै।।
सुख कौ सार समूह किसोरी उमँगि उमँगि अंकौं भरे।
श्री ललितमोहिनी की निजु जीवनि उर सौं उरज अरे।।
हौं हूँ आई देखन स्याम।
सुंदर नैन विसाल साँवरौ सब विधि पूरन काम।।
हा हा करत तकत गति अगनित प्रान प्रिया सुख धाम।
श्री ललितमोहिनी कौ सुख पूरन जामें बिहरैं आठौं याम।।
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