मोर
नेत्र से जिसका तेज गिरे वह कितना
बडा योगी होगा | सहज ही सहस्रार से रस गिरे ... और योगी भी जिस तेज को
बांधना चाहते हो वो बह जाये | ...
रस बना कैसे ... उन्माद - उत्साह -
उत्कंठा से | अद्भुत् |
लगन लगा कर मगन होने से बिना चाह कर भी योग घट गया ... वरन्
नेत्र पुलकित कैसे हुयें ... इन्द्रिय भ्रम
क्यों हुआ | स्वाभाविक योगी को
योगेश्वर धारण करेंगें ही | वस्तुत: वें
भी प्रगाड प्रेम रस नेत्रों में भरे हो |
जी हाँ मैं मोर की बात कर रहा हूँ |
सत्यजीत "तृषित"
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