जड़ता का भँग होना
*जड़ता का भँग होना*
श्रद्धा जड़ता भँग कर नित्यता का दर्शन करना चाहती है । श्रद्धा हीन होने से ही नित्यता का स्पर्श छुटा रहता है । स्थायी श्रद्धा से स्थायी नित्यता को अनुभव किया जा सकता है । श्रद्धा अति आंतरिक स्थिति है वह प्रभु भी सही से अनुभव नहीं कर पाते ...जितनी गाढ़ता से आश्रयभाव होगा उतनी ही छाया और शीतलता अनुभव होगी । वर्तमान प्रपञ्च की दृष्टि में संदिग्धता का रोग है अतः वह वास्तविकता के समक्ष भी नयनहीन है । श्रद्धा के विकास के लिये गहन पिपासा स्थिति होनी चाहिये ...तपी हुई स्थिति का स्पर्श भ्रामक नहीं होगा । उस स्थिति पर जो दृश्य होगा उसका अनुभव तापहीन जगत कर नहीं सकेगा । सूर्य के नेत्र जो देखते वह कोई क्या समझें क्योंकि अभी तो सूर्य को अनन्त दूरी से ही नहीं निहारा जाता है । ताप की उपासना पर नयन शीतलता मधुरता से अभिन्न होते जाते है । स्मरण रखिये बृज उपासना अन्तर्गत श्रीकिशोरी जू के इष्ट सूर्य है ...कोमलता मधुरता की उपासना ताप की वांछाओं से भरी है । तप से अभिन्नता होने पर अश्रद्धा का नाश होता है और अश्रद्धा से ही प्रपञ्च की सिद्धि है वरण सत्य तो यह है नित्य नाना रूप भगवत-विलास हो रहा है । तृषित जयजयश्रीश्यामाश्याम ।
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