श्रीवृन्दावन विलास ,युगल तृषित
श्रीवृन्दावन विलास मूल साकार विलासी श्रीस्वरूप निधि रसिकों के प्राण श्रीप्रियाप्रियतम जिस दृश्य को संयुक्त रूप से निहार रहे हैं , वह ललित सुन्दर मधुर अनुपम प्रेममय सुदृश्य श्रीवृन्दावन है । श्रीप्रियाप्रियतम के अपार अपरिमित विपुल रस और प्रेम को जो धरा धारण करती है ... वह मधुर रतियों की प्राण धारणा श्रीवृन्दावन है । प्रेम की अन्नत कौतुकमयी वर्षा है श्रीवृन्दावन । श्रीप्रियाप्रियतम के 'अपार' अपरिमित महाभाव प्रेम को समेट लेने वाले भाव रूपी वनों का समूह श्रीवृन्दावन है । श्रीप्रियाप्रियतम के श्रीनयनों से झरता ललित सौन्दर्य श्रीवृन्दावन है । श्रीप्रियालाल की नित्य अनुरागिनी मञ्जरी - सहचरियों के अनुराग से फूलता हुआ विलास श्रीवृन्दावन है । अनन्त मञ्जरी-किंकरियों या लता-फूलों द्वारा जो युगल की नित्य सेवावृत्ति रूप दिव्य भाव थली है , वह श्रीवृन्दावन है । प्रेम प्रदेश , प्रेम देश , प्रेम वेश , प्रेम विशेष और प्रेम ही शेष जहाँ उत्सवित है वहीं प्रेम की मधुरा श्रीवृन्दावन माधुरी है । सम्पूर्ण श्रीयुगल प्रेम के आस्वादन को श्रीयुगल को ही नित्य अर्पित करती अन्नत प्रफुल्ल फूलनियों का र...