बल्ब सूर्य नहीँ होता

अगर घर के 0 वाट के बल्ब का नाम सूर्य रख दूँ । तो वह सूर्य ना होगा ।
आजकल भगवान बनने का फैशन है । सावधान रहें ।

आजकल तो सब नाम और बाहरी "पैकिंग" [दैहिक] और वेष पर न्यौछावर ! किन्तु यहाँ भी वही सूत्र लागू होता है कि "फ़ैशन के दौर में "गारन्टी" की इच्छा न रखें।
जय जय श्री राधे !

क्षमा । सर्वत्र वहीँ ही है । परन्तु किसी वस्तु को मैं समझ उसमें भगवान की घोषणा करना भगवान का अर्थ कुछ छोटा करता है ।

इन दिनों कथित राधा स्वरूपा टीवी पर कथा करती है ।
और करीब 3 घण्टे में ऐसी विचित्र भाव भंगिमा और और वाणी कह जाती है कि पीड़ा होती है।  यहाँ श्री जी को नहीँ होती पीड़ा , वें तो मेरे पीड़ित होने से असहज होती है।  उनमें सम भाव ऐसा है कि ....
उन्हें स्वीकारें बिना नाम के आगे
राधा स्वरूपा लिख कर , नव श्रद्धालुओं में राधा जु की अप्राकृत भावना को प्राकृत और भौतिकी सी ही झाँकी देता है । लोग कहने लगते है अरे यें तो राधा ही है । फिर उनका टी वी पर प्रवचन में ही तीखा पन , डाँटना आदि से लगता है कि राधा तो नहीँ कम से कम स्वयं की ही अनुभूति हो तो तनिक धैर्यता , स्वीकार्यता उदय हो ।
और अब तो ऐसे ही भगवान अधिक बिस्कुट के ब्रांड कम होंगे । पुनः पुनः क्षमा ।। अहम् ब्रह्मास्मि । तुम हो तो मैं भी  । अहम् ..... ।।। आओ भगवान भगवान खेले , बचपन इन भगवानों का । हाँ फिर भी है वही । परन्तु 0 वाट का बल्ब पृथ्वी को प्रकाशित नहीँ कर सकता और वह सूर्य की तरह स्व प्रकाशित नहीँ केवल उपकरण है । अंधकार की अधिकता से बल्ब भी सूर्य लगने लगा है
यहाँ उस आफ़ताब को भी खबर नहीँ
के उस बागवाँ के गुलदस्ते में कितने आफ़ताब है

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