सर्वप्रकारेण समस्त में आप ही

पूजाते विष्योपभोग रचना
सभी विषय भोग समस्त क्रिया आपकी पूजा हो जाएं ।
निद्रा समाधि स्थितिः
निद्रा परम् योगियों को प्राप्त समाधि की परम् अवस्था ही हो जाएं ।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
प्रत्येक कदम आपकी परिक्रमा हेतु ही हो ।
स्तोत्राणि सर्वागिरो
उच्चारित होने वाला प्रति अक्षर आपकी स्तुति हो जाएं ।
जो बोलूँ आप ही का नाम स्तुति ही हो । मेरे समस्त भोगविलास या विकार में भी पूजन सा ही स्वाद हो।
कहीँ भी गिरते क़दम आपकी ही परिक्रमा में हो ।
जो करुँ आपके हेतु ही हो । क्योंकि तन-मन-वाणी आप ही है ।

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