वृंदावन एक सरोज है
राधा विहार विपिन श्रीमद् वृन्दावनधाम पूर्ण अनुराग रस सार समुद्भुत एक सरोज है ।
उस सरोज में जो पीले-पीले केसर है , वें किशोरी जू की सखियाँ है ।
उन केसरों पर जो पराग है , वह श्री श्यामसुन्दर ।
पराग में जो मकरन्द है , वहीँ श्रीराधारानी वृषभानुनन्दिनी हैं ।
श्री कृष्णचन्द्र के अनन्त माधुर्य का प्राकट्य श्री राधारानी वृषभानुनन्दिनी जो कि उनकी आत्मा हैं , उन्हीं पर होता है ।
युगल के परस्पर रस की क्या कही जाये ...
श्यामसुन्दर स्वामिनी के संगी हरिणियोँ को भी अनुग्रह भरी दृष्टि से निहार कर निहाल करते हैं । कृष्णसारमृग पत्नियों के नेत्र दर्शन से हरिणाक्षी श्री जी का स्मरण प्रियतम को हो आता , और श्री जी का स्मरण कराने वाली हरिणियों को भी श्री कृष्ण प्रेम माधुरी से देखते और स्वयं को कृतार्थ मानते है ।
--- सत्यजीत तृषित
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