वास्तविक मौन , तृषित
अगर मनुष्य के जीवन में वास्तविक मौन घट गया तो हम यह भी कह सकते है , भगवत्साक्षात्कार घट गया ।
मनुष्य को विचारों से गहन मोह है , वह सूक्ष्म रूप से विचार हीन नही हो सकता । अन्तः करण भी सदा कुछ कहना चाहता है , और उसे ही ना सुन पाने से व्यक्ति वास्तविक जीवन की उपेक्षा करता है ।
वास्तविक मौन में सम्पूर्णता का मौन चाहिये , मनुष्य तो सोते समय भी मौन नही है ।
विचार शून्यता के लिये साधन की आवश्यकता नहीं , यह सभी को प्राप्त अवस्था है , परन्तु बाहरी और आंतरिक रोग उस अवस्था को फलित नही होने देते , विचार शून्यता के उपरांत ही जीवन में आध्यात्मिक क्रांति घटती है , और वास्तविक कर्ता का दर्शन होता है ।
ईश्वर के स्वर हेतु श्रवण की आवश्यकता है , और सच्चा श्रवण विचार शून्य ही हो सकता है , वरन श्रवण की स्थिति में भी कथन ही भीतर चलता रहता है ।
विचार शून्यता सहज नही , और विचार शून्यता ही वास्तविक दण्डवत है, शरणागति है ।
वासनाओं के हटने पर जीवन स्वतः वास्तविक माँग के पथ पर होता है । किसी भी क्रिया की आवश्यकता नही ।
--- सत्यजीत तृषित
Comments
Post a Comment