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Showing posts from August, 2017

प्रेम आसक्ति व्यसन

भगवान से सर्व भावेन प्रेम हो भगवान में पूर्ण रूपेण आसक्ति हो भगवान के नाम , रूप माधुरी गुण आदि का व्यसन (नशा) हो जाएं । प्रेम - सत् गुण का परिणाम आसक्ति -रजो गुण का अप्राकृत रूपा...

सर्व मेव स्वरूप से निज स्वरूप तक की यात्रा , तृषित्त

जगत भगवान का विलास अनुभूत हो । सब रूप श्री प्रभु ही है । वो जो भी बन कर आवे आप उन्हें पहचान जावें । पर हृदय उनके इस खेल की अपेक्षा अर्थात भेष धर कर आने की अपेक्षा उनके निज स्वरूप...

आर्त में भी आनन्द (रहस्य) , तृषित्त

आर्त में भी आनन्द (रहस्य) श्री प्रभु की पीर का उदय बिन प्रेम होता नहीँ । पीर अर्थात आर्त कष्ट । अब आप कहेंगे उन्हें कोई कष्ट नहीँ । ऐसा नहीँ । हृदय की मलिनता उनका कष्ट है । सन्त...

सविशेष की लालसा और सहज भगवत नित्य सुख , तृषित

सविशेष की लालसा और सहज भगवत नित्य सुख संसार सदा विशेषता खोजता ॥ विशेषता न है पता चलते ही जो सहज आकर्षण उदित हुआ था वह निःशेष हो जाता स्वतः ही ॥ परंतु प्रेम में जहाँ भी कोई कार...

प्रेम प्यासा और तृषित

प्रेम प्यासा कोई मिले तो पत्थरों से आज भी झरने फुंट पड़े ... जो मिलता है सागर मिलता है इस पत्थर में भी पानी तो था ... काश कोई प्यासा भी मिलता ... तृषित

रस से टपकता रस सदा , तृषित

रस से टपकता रस सदा चेतना तू नित रस की बिंदु काहे गावे अलाप नित विष  हूँ , विषैली हूँ , विषाक्त हूँ है तू विष ... रस सिंधु यह न समझ सकेगा क्योंकि रस से टपकता रस सदा सुन ... रस की नित टपकन .....

कन्टक पुष्प, तृषित

कन्टक - पुष्प कंटक वन सा जीवन मधुशाला की मधुता कहाँ से लाता ... पंकिल  वह  विष्टा अणु दुर्गंन्ध से नीरज सुरभता कहाँ से लाता ... तिमिर गहन अंतःकरण का शुक्ल रात्रि की प्रतिपदा भीत...

मधुरित रज के आंतरिक पटल को छूकर , तृषित

मधुरित रज के आंतरिक पटल को छूकर पुष्प तक खिलती वह वल्लरी रसित सरस पुष्प के मधु को छिपाये वह कली नित्य मधुकर की नित माधवी रज से सींच कर मधु तक की यह यात्रा पिपासा एक चक्षु हीन ...

सहज त्याग की आवश्यकता और व्याकुलता

मेरे सँग से कहीं प्रेम मय लाभ नहीँ होता तो वहाँ मेरे द्वारा त्याग से शीघ्र लाभ होता है । मानव की विशेषता है कि वह शत्रु द्वारा भी त्याग सहन नही करता । स्वीकार्य किये जाने पर व...

प्रेम-विज्ञान , तृषित

प्रेम-विज्ञान वस्तुतः अनुभव से कहे तो विशिष्ट बोध केवल प्रेम मात्र है । जिसे बोधगम्य स्वीकार ही नहीँ किया जा सकता । जीवन इतना विचित्र है कि गणित और तर्क निवृति से पूर्व प्...

तुम केवल तुम्हीं प्राण प्यारे , तृषित

तुम केवल तुम्हीं प्राण प्यारे । भोजन किया आपने आज , क्या किया । कैसा था । उत्तर बना न कुछ भीतर क्या बना ?? जो भी बना हो उत्तर श्यामसुन्दर तो उत्तर नहीँ न । क्या पीया आज ...  श्यामसुन...