मधुरित रज के आंतरिक पटल को छूकर , तृषित
मधुरित रज के आंतरिक पटल को छूकर
पुष्प तक खिलती वह वल्लरी
रसित सरस पुष्प के मधु को छिपाये
वह कली
नित्य मधुकर की नित माधवी
रज से सींच कर मधु तक
की यह यात्रा
पिपासा एक
चक्षु हीन नेत्र कहते जिसे
जड़
वह मधु यात्रा हूँ मैं
एक "तृषित"
वर्षा पूर्ण जल अणु
-तृषित
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