केलि झारियाँ trishit

रंगीले प्राण - हे सखी , कैसी गौरांग छटा मुझमें भर गई है ? कब-कहाँ-कैसे मुझे इतने आभूषणों में सजाकर नवदुल्हिनी स्वरूप दान किया ??
कैसे मुझमें इन सौंदर्य श्रृंगार सौरभताओं सँग लज्जावति होने से ..घूँघट ना छुट जावें यह दशा बढ रही है
हे सखी,  वह नृत्योन्मत्त श्यामले किस विधि से मेरे प्राण ...मेरेहिय का रंग ले गई है । मैं गौरांगी हरिवल्लभा तो नहीं हूंँ ना , कौन हूँ मैं सखी ??? क्योंकि प्रियतम सन्मुख पाकर भी हिय पुकार रहा है ..हे प्रिया ...हे स्वामिनी ..श्यामा । ममप्राणाधिका । प्राणरँगिली । Don't SHARE.

श्रीप्रियतम -- हे प्रिया रात्रि वह विश्राम घटियाँ प्रभात पूर्व जब तुम मुझसे अपने कोमलांगो को मेरी ही पीताम्बर से छिपाती जाती हो , और मेरे पीताम्बर चाहने के अनुरोध में लजाती जाती हो , वह क्षण मेरे हृदय में ऐसे उभर जाते है जैसे मुझसे मुझे ही तुम छिपा लेती हो , कितनी सहज हो तुम । वह अधर चिन्ह तुम्हारे प्राणों की निज वटी हो जाते है ... तत्क्षण तुम्हारी लज्जत्व वृत्ति मुझमें झरने लगती है कि अहो किस भाँति मैंने कब तुम्हारा ऐसा वरण प्राप्त किया ? अपने ही अधर चिन्ह दर्शन लालसा में मैं तुमसे नेत्रों से विनय कर पीताम्बर लौटाने का अनुनय करता हूँ ... Don't share

निभृत प्रियतम - हे भावसुन्दरी कब मैं अपने अधररंजित दन्तों की अरुणिमा तुम्हारे उरज मण्डल पर बिखेर करावलियों से सरसित कटि को थामे अधरपिपासित नेत्रों को चरण सेवातुर नित्य अनुराग में डुबो सकूँगा ... Don't SHARE




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