गौ , तृषित
*गौ* के जितने भी अर्थ है सभी आज पुकार रहें है सुरक्षा ।
हम वसुधा की सेवा नहीं कर सकते परन्तु गौ सेवा सम्पूर्ण पृथ्वी की सेवा है । गौ और भूदेवी में भेद नही है ... शास्त्र सिद्ध रहस्य है ।
ब्रह्मांड की जनक शक्ति भी गौ से प्रकट होती है । अतः पुराणों में गोलोक गौरूप ही साकार है ।
गौ विशुद्ध सत्व का प्रकटरूप है । वह सूर्य की उत्कृष्ट किरण हो , वेद की सारऋचा गायत्री हो , गोपी हो ... ,
आज हम सत्व से भी छूट गए , तब विशुद्ध सत्व यह शब्द ही बहुतों को संकट लगता । हाँ राजसिक-तामसिक जीव हम दिखना सात्विक मानव चाहते है । "तृषित"
गौ पुकार रही यहीं अपराध हुआ है , प्रलय उत्तम है ... गौ के रुदन और अश्रु से ... ।
कल्पित बात नहीं । शास्त्र कहता सब ।
गौ पर मुझसे बात नही होती । क्योंकि सेवा की आवश्यकता बात की नहीं ।
मेरे लिये गौ प्रकट दृश्य गोपी है उनकी ।
मुझे गौशाला नही । घर-घर में गौ दर्शन चाहिए ।
दो या तीन या चार पीढ़ी पहले हममें बहुत गोपालक थे ।
गौशाला और माँ का वृद्धआश्रम वास इसमें भेद क्या है ???
मुझे अपनी माँ अपने घर चाहिए । जो समर्थ है , अपनी अपनी माँ ले आवें । माँ को पालने की संस्था इस देश को धर्म लगती ... जरा मनहर के नयनों से देखिये । अपनी-अपनी माँ , अपने अपने घर । मेरे मनहर के पास इतनी माँ है कि वे भी नहीं गिन पाते । गौ माँ ।
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