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Showing posts from February, 2019

संवाद (बातें) - तृषित

*संवाद*  (बातें) हैरान ही नहीं हूं ...हैरत में कैद हूँ आश्चर्य ...सघन सघन उलसता आश्चर्य ...और और बरसती बिखरती नई और ...और नई अदा । अदा ही नही हवाओं में भरती और सघन ...सघन और सघन रूपमाधुरियाँ...

भाव कैसे बने - तृषित

भाव कैसे बने ??? अपने को श्रीजी की दासी - भावना - सेवा - श्रृंगार - सखी - किंकरी सहचरी मानकर वही हो जाने के लियें प्रति क्षण उस स्थिति का चिन्तन करते हुये श्रीनाम और रसिक वाणी को भीतर ...

आध्यात्मिक खिचड़ी युग - तृषित

*आध्यात्मिक खिचड़ी युग* आज सभी भावुक या साधकों में सभी पथों की खिचड़ी है क्योंकि अपना पथ हृदय से नही मिला है और बाहर का ही साधन मात्र है जबकि प्रगाढ रसिक वाणियों में रस रीति की भ...

स्थिर-संचरण - तृषित

*स्थिर-संचरण* युगलनिधि हियनिधि रँगश्रृंगारविवर्तनिधि केलिवैदग्धनिधि श्रृंगारनिधि के कुछ यही भाव आस्वादनीय ऋतु मधुऋतु सँग बासन्तीनिधि विलास की तनिक खनक से भरा अग्रि...

निभृत नित्य विलास - तृषित

*निभृत नित्य विलास* एकान्त ...और एकान्त में विलास और विलास में विश्राम और वह विश्राम अनन्य रूप से नित्य सँग हो । तब निभृत रस है । विलास में सदा विश्राम है और विश्राम ही विलास का ...

सूक्ष्म अहंकार ... तृषित

सूक्ष्म अहंकार प्रपंच की कोई क्रिया अहंकार से प्रथक होकर प्रकट नहीं हो पाती । निर्द्वन्दी रस भावुक पथिकों के अनुसरण में हम वर्तमान में जितना विपुल भागवती संस्कारों को द...