सहज स्पर्श , तृषित
*सहज स्पर्श*
और सुनिये , अभी भीतर चित्र सजा नहीं । ...यदा-कदा इस भाँति दी टिप्पणी पर किन्हीं को आश्चर्य होता है कि कैसे तृषित को अनुभव होता है वह भावबिन्दु जो अभिव्यक्त ना हुआ हो ।
स्वस्थ चेतना का बिन्दु-बिन्दु निज भाव को प्रकट करता है । जैसा कि श्यामसुंदर के नाम स्मृति मात्र से हृदय अति गहन रसीले स्वरूप की छाया से भीगने लगता है । स्मृति मात्र उस चेतना की पारदर्शिता अनुभव कर सकती है (स्कैन) । किसी भी इन्द्रिय सँग से प्रकट भाव-बिन्दु उस चेतना की सम्पूर्णता को छू सकता है । अर्थात् फोन पर ध्वनि या लिखित संवाद से सम्पूर्ण चेतना की सुगन्ध मिल सकती है । परंतु यह सभी को अनुभव नही होता कारण भोग लिप्त स्थिति में रमण और वास्तविकता और अभिनय के मध्य भेद से अनभिज्ञता ।
कुछ ऐसे भी सँग होते है कि वह अभिनय से या वास्तविक प्रकट होते है उन्हें स्वयं अनुभव नहीं होता । परन्तु निर्मल दर्पण सभी रँगों का श्रृंगारक होता है । किसी एक रँग की परत से ढका दर्पण सही रँग ना देख पाता है , ना दिखा सकता है ।
यह तनिक निज विषय है , परन्तु इसमें निजता की कोई व्यक्तिगत महिमा नही है इस तरह के गहनतम अनुभव प्रत्येक वनचर-नभचर-जलचर पशु-पक्षी को रहते है अगर उन्होंने किसी प्राकृत सत्ता की अधीनता स्वीकार न की हो । एक नन्हा शिशु भी कुंठित या अस्वस्थ चेतना के स्पर्श पीडित हो उठता है । आज पर्सनलिटी डवलपमेंट हो रहा है यह केवल स्वयं को नायक व्यक्त करने का अभिनय है । फूल या पक्षी इस तरह के कोर्स को किये बिना आकर्षण उड़ेल रहे होते है , कारण वह आकर्षित हो रहे होते है और सहज की किसी विभु सत्ता की शरण में है । शरणागत के भीतर प्रकट यह वैचारिक प्रतिबिम्ब उसे सन्मुख की छिपी भावना दिखा रहा होता है । मैं केवल लिखित ही रस- सौंदर्य की महिमा निवेदन कर रहा हूँ , जब मेरी चेतना सहज स्वस्थ होगी तब अपरिचित गिलहरी को दूर भागने की आवश्यकता ना रहेगी । हाँ ,तब मति या बुद्धि तत्व विश्राम पर होगा सो तब उत्स तो होगा परन्तु उसकी समीक्षा हेतु विवेक भी उत्सवित रंगों में भीगकर स्मृति संयोजन नहीं करेगा । मति का यह विश्राम अनुभव ही उत्स है परंतु निजमति का सँग त्यागना अति कठिन है । पक्षियों के पास अपने नित्य के गीत-संगीत का कोई रिकॉर्ड नहीं है , वह स्वयं ही उसे जीवन सँग ध्वनित करते है ।
सहज शरण से शरण्य ध्वनित रहते है । अर्थात् दास केवल हरि चरण को छूता है अर्थात नव शिशु निज जननी को बिना किसी प्रमाणपत्र पहचान सकता है क्योंकि उसे अन्य की माँग नही रहती । भरे विश्व में एकाश्रित को ही यह उदार करुणा वात्सल्य लहर झकोर रही होती है । और वर्षा से पूर्व चींटियों के काफिले को कोई संदेश आ रहा होता है । तृषित । नन्हें शिशु सँग व्यापक प्रेम जगत सहज रहता है ।
जयजय श्रीश्यामाश्यामजी । अपनी यात्रा को देखना चाहिए असहजता की ओर है अथवा सहजता की ओर । सहजता से छूटने का नाम भव (जगत) है परन्तु सहजता भीतर एकत्र करती चेतना स्व को छू सकती है ।
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