अप्राकृत श्रृंगार , युगल तृषित
*अप्राकृत श्रृंगार* अप्राकृत भावना से सँग होने हेतु अपने अप्राकृत जीवन को बाहर लाने हेतु इसी सृष्टि से प्रति तत्व का अप्राकृत श्रृंगार खोजिये । हर प्राणी , हर भावना , हर कोई , जो भी सन्मुख हो उसमें श्री युगल का सुख निहारने की कोशिश करें । भौतिकी नयन सन्मुख में अभाव खोजते है , क्योंकि वह अपना प्रभाव सजाते है , परन्तु प्रेमी के नयन प्रेमास्पद का श्रृंगार खोजते है , और आप निश्चित प्रेमी ही है सो सन्मुख स्थितियों में तलाशें सदा हृदयस्थ निधि के सुखों को ।जब सन्मुख स्थिति के वह गुण (महाभाव) लालसा से स्वयं में उच्छलित हो जावेगें , जो उन्हें भी अनुभूत नहीं हो तो आपकी अपनी स्थिति महाभावित होगी ही ...परन्तु वह स्थिति महाभावित जब तक रहेगी जब तक यह सहज घटता रह्वे । आती हुई प्रति घटना को लीलावत निहारने की लालसा हो भीतर । लीलामय निहारन में अपनी प्राप्त देह - इन्द्रिय आदि सुखों की परिधि पार करने को आतुर रहें क्योंकि यात्रा नित्य स्थितियों तक शीघ्र ही गूँथनी है । प्रति सँग से भगवदीय सुख खोजकर उनके प्रति भीतर महाभावित होकर गोपन रीति से वह सुख सिद्ध कर लिया जावें ...जैसे नृत्यमयी तितली ...