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Showing posts from February, 2020

अप्राकृत श्रृंगार , युगल तृषित

*अप्राकृत श्रृंगार* अप्राकृत भावना से सँग होने हेतु अपने अप्राकृत जीवन को बाहर लाने हेतु इसी सृष्टि से प्रति तत्व का अप्राकृत श्रृंगार खोजिये ।  हर प्राणी , हर भावना , हर कोई , जो भी सन्मुख हो उसमें श्री युगल का सुख निहारने की कोशिश करें । भौतिकी नयन सन्मुख में अभाव खोजते है , क्योंकि वह अपना प्रभाव सजाते है , परन्तु प्रेमी के नयन प्रेमास्पद का श्रृंगार खोजते है  , और आप निश्चित प्रेमी ही है सो सन्मुख स्थितियों में तलाशें सदा हृदयस्थ निधि के सुखों को ।जब सन्मुख स्थिति के वह गुण (महाभाव) लालसा से स्वयं में उच्छलित हो जावेगें , जो उन्हें भी अनुभूत नहीं हो तो आपकी अपनी स्थिति महाभावित होगी ही ...परन्तु वह स्थिति महाभावित जब तक रहेगी जब तक यह सहज घटता रह्वे । आती हुई प्रति घटना को लीलावत निहारने की लालसा हो भीतर । लीलामय निहारन में अपनी प्राप्त देह - इन्द्रिय आदि सुखों की परिधि पार करने को आतुर रहें क्योंकि यात्रा नित्य स्थितियों तक शीघ्र ही गूँथनी है ।  प्रति सँग से भगवदीय सुख खोजकर उनके प्रति भीतर महाभावित होकर गोपन रीति से वह सुख सिद्ध कर लिया जावें ...जैसे नृत्यमयी तितली ...

जुगल सुख लक्ष्य , तृषित

हमहिं कौ लक्ष्य जुगल सुख रह्वे पियप्यारी कौ । जेई पियप्यारी कौ नाम भी निज रूचि सङ्ग आप ही देईं ल्यो । एकहिं भावस्वरूप माधुरी को जोई नाम रसिक प्रदत ह्वे अथवा भजन होवें अथवा प...

बसन्त विलास उत्सव हेतु भावबिन्दु

*रसिले फूलों की चोट नयनों पर , अधरों पर हृदय पर , श्रृंगार वत कर्णफूल आदि पर , फूलने को उतावली रोमावलियों पर* *पिचकारी है शहद (फूल का ललितरस ) की बसन्त , वपुओं को मधु में अभिषेक करता उ...

बसन्त उत्स लालसा

अग्रिम वर्ष 2021 की बसन्त उत्सव लालसा प्रथम दिवस - प्रारम्भ में ललित लवंगलता मूल पद फिर नवीन बसन्त पद सँग रस ध्वनि श्रृंगार पूर्ण होने पर चन्दन चर्चित पूर्ण पद द्वितीय दिवस - वृ...

हरिरिह प्रस्तावना तृषित

श्रीगीत गोविन्द श्रीहरिप्रिया किशोरी जू श्रीजी से झरित गीतात्मक गोविन्द स्वरूप स्वभाव है । गोविन्द वपु की संरचना में जो श्रीजी ने गाया वह गीत । गीत गोविन्द श्रीयंत्र र...

परमार्थ और भावदेह , तृषित

परमार्थ और भावदेह भाव पथिक को भावदेह चाहिये । परन्तु वह स्वार्थ की परिधि को विस्तृत नहीं कर पाता । भजन या साधन किया जा रहा स्वयं को कुछ देने हेतु ही । स्वयं को कुछ न मिले अथवा ...