जुगल सुख लक्ष्य , तृषित

हमहिं कौ लक्ष्य जुगल सुख रह्वे पियप्यारी कौ । जेई पियप्यारी कौ नाम भी निज रूचि सङ्ग आप ही देईं ल्यो । एकहिं भावस्वरूप माधुरी को जोई नाम रसिक प्रदत ह्वे अथवा भजन होवें अथवा प्राणन माहिं रह्वे वही नाम , वही रूप सुं युगलरस पी लीजो । हम कहवै श्रीराधावल्लभलाल , तौ भजन कुंजबिहारिणी कुँजबिहारी जू है तौ सुनो वही ध्वनि कौ श्रीबाँकेबिहारीलाल । हम कहवै राधामाधव तौ हिय ते निताईगौर जोरि कृपा सँग गाओ भीतर प्रियानिमाई । जुगल रस कौ सुख अपनो पक्को होवें तौ अपनो हित कौ सुख विलस सके है । वरण नाम नवीनता सुं ही भाव सँग अपनोपन न बनी रह्यो ह्वे हमहिं तौ सबहिं नाम भजवै कौ राजी ह्वे , जबहिं राधामाधव भजे तौ नवनवीन बिहारिण-बिहारी जू की प्रीति हिय माहिं आपहिं में विलसे । हम सबहिं नाम सुं भजि लें जे कृपा भी नव ललित अनुराग लता ही करि सकें । एकहिं बार हिय ते निजता स्फुरित होई जावें तौ हिय माहिं निज पिय ही स्फुरित होवें । नवीन नाम सुं ही लीला नवीन रह्वैं , नवीन लीला हेत नवीन नाम अपने हिय नाम की नव सुगन्ध रह्वे । बिन्दुवत हिय सुं एकहिं नाम भजन बनी सकें जे कृपा होवें सो श्री जुगल सुख की अलि बनी फूल फूल जोई जोई पियप्यारी की सुरभता सुं पुलक पुलक रह्वे वहीं हिय माहिं भरी भरी सुनी ल्यो । प्रेमिन बाँवरी मन्द समीर ते निज हियधन की सुवास भरि लें त्यों ही रसिली रँगीली सखी निज हिय रँग माहिं रँगी-रँगी जेई रँग पियो , जोई हिय चाह्वे निज हियधन भाव नाम रस रँग सुं भाव झरण रह्वे तौ हमहिं कौ निज पद रति आश्रित करि जे सुख भी लेई ल्यो किन्तु सहचरी वश विवश होय इत-उत तनिक ही झाँक सकें है निज हिय ते भरित लपेटित प्रेम खग जोरि के सुख कौ आहार विलास भरी भरी सहजनो ही होवें ज्यों लोक ते जननी निज जननी कोऊ उत्सव माहिं अपने हिय लाल सँग लेई जावें त्यों बिन न्यौता हमहिं सँग हिय ते लाल आवें ही आवें है री अबहिं तौ तोरे हियलाल की रिझावन की सेवा माहिं तनिक तनिक निज हियलालन की भी भृंगन झोरी भरि भरि लेऊँ। छोड़ी के आई न सकूँ वरण उत्स उच्छ्लन न बनि सकेगो री त्यों तोहे लागें हमहिं कोऊ भिन्न जोरी को जस गावैं तौ निज हियजोरी कौ रसिलो झोटा निज पद रति झारी झरित करि दे सखी री । श्रीकुञ्जबिहारी श्रीहरिदास
न री तेरो रँग बड़ो पक्को ह्वे । आपहिं रसिकन कौ सँग तौ रँग भरयौ ह्वे । डारी दो री निज रँग की उरेख मोपे ज्यों त्यों कि ज्योहिं ज्योहिं तुम...

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