सखी हियोत्सव झरण

कुँजन को अर्थ है ललित श्रृंगार भरित विपुल वन बिहार हेतु सरस सेवा को रसिक ललितकिशोरी जोरी हेत मोहित सोहित वल्लरियन की रँग खेंचन माहिं लपट-लिपट झूमै झुमावै ऐसो भाव लता कुँज

अब कोऊ कोऊ सखी इतनी सरस् माधुरिन कौ सुनी के जे न विचारें कि हमहिं तउ गाई न सकें है री । जैसे हमहिं रोवें और रसिक सँग हिय वासित युगल सुनी सुनि सुन ही ले , त्यों ही जे गाती नाचती सखिजन हमारो ही तो हिय तार छेड़ गाय रही । जे रसिक गान और रसिक सखी हमहिं की ही प्राण रसिली सेवा है । हमहिं के श्यामाश्याम कौ रिझावै जोई हमहिं की है । हमहिं सुं रंगिली रसिली सखी है । सखिजन माहिं प्राण कौ भेद ना होवेगो ।

मिलित तनु की एकहिं छाया ,  अनन्त विलासोत्सव में भरी रँगीली छायाएँ जोई युगलार्थ नव नव है री ,पर छाया युगल की एकहिं है हमहिं की श्री... रसिली सरकार

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