वर्षा विनय , तृषित
*वर्षा विनय* निष्काम - सिद्ध - वैदिक - प्रेम सभी पथ के पथिक अपने आराध्य के सुख स्वरूपों या उनके विलास सेवकों से वर्षा की माँग कर सकते है । और यह माँग होने पर पथ के निष्काम स्वरूप में कहीं खण्डन नहीं होगा । मेरा विनय है वर्षा माँगिये । पूर्व काल में वर्षा के लिए वैदिक अनुष्ठान प्रयोग होते रहे है । वर्षा अनिवार्य माँग होनी चाहिए और वर्षा के वर्षण में मानसिक दोष प्रकट करने वालों का सँग छोड़ दीजिये या उन्हें स्पष्ट करना चाहिये कि प्राणी मात्र और तृण मात्र की तृषा वर्षा से ही रस सिद्ध होगी । (बहुतायत प्राणी वर्षा के वर्षण होने पर मानसिक या कथित भाषण करते है कि अभी क्यों आई ...तब आती ) वर्षा का समुचित अभाव है । वर्षा की माँग से वही छूट सकता है जिसने जल की बिंदु भी सँग न की हो । सो प्रार्थना कीजिये वर्षा के निमित्त और जब वर्षा हो तब अधीर भाव से प्राणों से यही पुकार उठे और बरसो न ...और । मुझे फिर कोई अधीर न दिखे इतना बरसो न । वर्षा माँगिये , आपकी कोई साधना हो वह भँग ना होगी ।
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