*प्रियता-प्रेम-रस* जानती हो सखी.. हम उन्हें क्यों प्रिय है , क्योंकि हम है ही उनके री । जो जिसका होवे उसके स्वभाव में होवे है प्रेम री । सो हम उन्हें प्रिय है , बस उनकी इस प्रियता सु...
बसैई रहे ,खेली रहे नटवर नागर कौन आँगन में सखी तोरे आँगन में ...हिय आँगन में । कौन सँग गावे तू ,कौन सँग बतियावे ह्वे री कान्ह सँग गावे , सुन्दर सँग बतियावे ह्वे री काहे लहरावे नाचै ,...
1• आश्रय लेना है,देना नहीं... 2• स्वाभिमान का त्याग... 3• चेतना लज्जाशीला है... 4• मूल का विवाह मूल से... 5• प्रेमगत गोपीभाव गाढलज्जाशीलता है... 6• सामूहिक आवरण विसर्जन से अति लज्जा शीलता स्फूर्त होती है ... सिद्ध भक्ति में आंतरिक भावदेह अनावृत सी हो गहन लज्जमय हो और गहनता में स्वयं से भी संकोचित हो उठती है । 7• लज्जा (संकोच)... 8• लज्जा ही श्यामाजू की शरणागत हो सकती है... 9• जब जब हमलज्जाशील है... तब तब हम चेतना शील हैं... 10• आधुनिक परिवेश मे तो लज्जा हास्यास्पद स्थिति है ... 11• चेतना जब खिलेगी किशोरी अनुराग में भीगी रँगीली रस बाँवरी तितली (अलि) हो जायगी ...
Do Not Share {यहीं पढ़े आगे न दे} जो कछु कहत लाडिलौ लाडिली जु सुनिये कान दै स्वप्न - भृम सदृश्य अनुभूति प्रियतम सँग रसभुत श्यामा अकुला रही ...गाढ़ आलिंगित... वह अनन्त प्रयास करते-करते शिथिल स...
अभी तो हर कोई ज़ख्म-इल्म नशा बन जाता है दुनियां में तो शराब को भी पूजा जाता है दर्द तुझे हर बदलती दवा में नशा हो जाता है वो इश्क़ कहाँ जो किसी भी हुस्न पर फ़िदा हो जाता है... दर्द हो य...
मधुर आसक्ति ... वस्तुतः है हम सभी को मधुर आसक्ति ...मधुरता की लालसा । परन्तु भोग विषयों में ही ...सस्ती-नकली मधुरता से सब की यात्रा चल रही । भोग लोक के विषयों में क्षणिक मधुता या सौं...
हे प्राण । कब मैं तुम्हारी हो तुम्हें नित प्राण रूप प्रति क्षण अनवरत पुकारती रहूँगी । क्या प्रीति वल्लरियाँ इस पाषाण से कभी नहीं लिपटेगी । प्राणों की विस्मृति पर मिला जीव...
आह्लादिनी प्रीति की सुगन्ध रहस्य भक्ति... आहा ...आह्ह ...आह्लादिनी । कितनी अनन्य सेवा है अपने ही हृदय आह्लादिनी की रिझावण की । अति कोमलांगी यह प्रीति स्वरूप और स्वभाव से झरत...