बसई रह्वे हिय आँगन में री
बसैई रहे ,खेली रहे नटवर नागर कौन आँगन में
सखी तोरे आँगन में ...हिय आँगन में ।
कौन सँग गावे तू ,कौन सँग बतियावे ह्वे री
कान्ह सँग गावे , सुन्दर सँग बतियावे ह्वे री
काहे लहरावे नाचै , उड़ती झूमती जावै
नैन की कोर से तरंगिनि सागर पीती जावै
नव-नव रस सुधातरंगिनि उमड़-घुमड़ सरोवर कोऊँ रिझावै
रस पाश सुं ही फँसी रह्वे , छुटि पुनि डूबी-डूबी अकुलावै
अरी रस सुधा लुटाविनि तू धनि धनि रस सुख भोगिनी कहावे ,
कैसो भोग जेई रस पान कियो सरबस , जोग रोग सबहि छुटे । रसभरी-रसमयी-रसिली-रसप्राणसँग फिरि जोगिन की जोगी *प्रीतप्यारी* तू कहावे ...
तृषित
जयजय श्रीश्यामाश्याम जी
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