इल्म और दर्द ...तृषित

अभी तो हर कोई ज़ख्म-इल्म नशा बन जाता है
दुनियां में तो शराब को भी पूजा जाता है
दर्द तुझे हर बदलती दवा में नशा हो जाता है
वो इश्क़ कहाँ जो किसी भी हुस्न पर फ़िदा हो जाता है...
दर्द हो या मर्ज़ बस इक आह ! इबादतों में गुनहगार को यहाँ माँगा जाता है
...और हर गुनाह पाक होते होते कहीं उसकी उलफ़्तों में कैद हो जाता है
इश्क़ तुम कहते हो ...फिर क़त्ल से डरते हो ...मीठे क़त्ल बाद का नशा या
कहो ...मेरे बाद वहीँ ...वहीँ ...वहीँ रह जाता है ...
आह ...यह कौन मुझमें कुछ नया सा घुल जाता है
*तृषित*

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय