आश्रय लेना है , लज्जा ...तृषित

1• आश्रय लेना है,देना नहीं...

2• स्वाभिमान का त्याग...

3• चेतना लज्जाशीला है...

4• मूल का विवाह मूल से...

5• प्रेमगत गोपीभाव गाढलज्जाशीलता है...

6• सामूहिक आवरण विसर्जन से अति लज्जा शीलता स्फूर्त होती है ... सिद्ध भक्ति में आंतरिक भावदेह अनावृत सी हो गहन लज्जमय हो और गहनता में स्वयं से भी संकोचित हो उठती है ।

7• लज्जा (संकोच)...

8• लज्जा ही श्यामाजू की शरणागत हो सकती है...

9• जब जब हमलज्जाशील है... तब तब हम चेतना शील हैं...

10• आधुनिक परिवेश मे तो लज्जा हास्यास्पद स्थिति है ... 


11• चेतना जब खिलेगी किशोरी अनुराग में भीगी रँगीली रस बाँवरी तितली (अलि) हो जायगी ...

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